खतरे में हैं धरती का सबसे मेहनती सुपर जीव मधुमक्खियां
पृथ्वी पर लगातार बढ़ती आबादी, औधोगिकीकरण और शहरीकरण, तेजी से विकास गतिविधियों के कारण ग्रीन हाउस गैसों का दबाव बढ़ता चला जा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज नीले ग्रह (पृथ्वी) पर बढ़ती मानवीय गतिविधियों से लगातार जलवायु में आमूलचूल परिवर्तन आ रहें हैं।सच तो यह है कि इन परिवर्तनों का पृथ्वी के सभी क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, जैसे कि तापमान, मौसम पैटर्न, बर्फ और महासागर, और इन परिवर्तनों से कई प्राकृतिक और मानवीय प्रणाली प्रभावित होती हैं। बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन का मानव जाति और धरती की वनस्पतियों पर तो पड़ा ही है, साथ ही साथ इससे कीट प्रजातियां भी विशेष रूप से प्रभावित हुईं हैं और इनमें भी विशेषकर मधुमक्खियां। आज मधुमक्खियों की संख्या निरंतर घटती चली जा रही है और इसका खुलासा हाल ही में जर्मन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है। उन्होंने बताया है कि आज शहरी इलाकों से मधुमक्खियों की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ शोध और अध्ययनों में तो यहां तक अनुमान लगाया गया है कि 1970 के दशक के बाद से कीट बायोमास विशेषकर मधुमक्खियां लगभग आधी ही रह गईं हैं।एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार ‘जर्मनी में जूलियस मैक्सिमिलियन्स यूनिवर्सिटी (जेएमयू) के वैज्ञानिकों की एक टीम के एक हालिया अध्ययन में वहां की 179 जगहों पर कीटों द्वारा किए जाने वाले भूमि उपयोग और बढ़ते तापमान के संयुक्त प्रभावों का विश्लेषण किया गया। इस शोध-अध्ययन के निष्कर्ष रॉयल सोसाइटी ऑफ बायोलॉजी : बायोलॉजिकल साइंसेज में प्रकाशित हुए।’ आज पृथ्वी का बढ़ता तापमान और भूमि के निरंतर बदलते उपयोग के बीच मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। शोध में यह सामने आया है कि मनुष्यों की तरह मधुमक्खियां न केवल दिन के उच्च तापमान से प्रभावित होती हैं, बल्कि औसत से अधिक गरम रातों का भी उन पर असर पड़ता है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार रात के औसत तापमान में दिन के तापमान की तुलना में तेजी से वृद्धि होती है, जिससे कीटों पर अधिक दबाव पड़ता है। आज मधुमक्खियों को उनके द्वारा खुले क्षेत्र में आवास बनाने पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और उल्लेखनीय है कि मधुमक्खियां अक्सर बढ़ते तापमान से निपटने में काफी सक्षम होतीं हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि अध्ययन से यह भी पता चला कि इन कीटों(मधुमक्खियों) की स्थिति उन क्षेत्रों में बेहतर हुई, जहां कृषि भूमि, प्राकृतिक आवासों के साथ लगी हुई थी। कहना ग़लत नहीं होगा कि मधुमक्खियों को पनपने के लिए कहीं अधिक बेहतर मिश्रित वातावरण, संसाधन और प्राकृतिक वातावरण की जरूरत होती है, जो आज वायु प्रदूषण, खेती में अंधाधुंध कीटनाशकों और रसायनों के प्रयोग, खेती के लगातार बदलते तौर-तरीकों से कहीं न कहीं प्रभावित हो रहा है। बहरहाल, इस धरती पर किसी भी अन्य कीट ने इतनी अधिक लोकप्रियता हासिल नहीं की है, जितनी कि मधुमक्खियों ने। वास्तव में, ऐसे बहुत कम अन्य जानवर और कीट हैं जिनका मानव सभ्यता पर उतना प्रभाव पड़ा है जितना कि मधुमक्खियों का। सच तो यह है कि आधुनिक कृषि और मानव संस्कृति को आकार देने वाले इन(मधुमक्खियों का) मेहनती कीटों का बहुत बड़ा योगदान है।पाठकों को बताता चलूं कि मधुमक्खियाँ उस जैव विविधता का हिस्सा हैं जिस पर हम सभी अपने अस्तित्व के लिए निर्भर हैं। उल्लेखनीय है कि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) की ऐतिहासिक 2019 रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों में मधुमक्खियों के बारे में पवित्र अंश सहस्राब्दियों से मानव समाजों के लिए उनके महत्व को उजागर करते हैं।’आज खाद्य श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (मधुमक्खियां) लगातार घटता चला जा रहा है,यह बहुत ही चिंताजनक है। यहां पाठकों को यह बताता चलूं कि मधुमक्खियों में गिरावट को विशेषज्ञ ‘कॉलोनी पतन विकार’ के नाम से जानते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मधुमक्खियां अपनी कॉलोनियों से परे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे अनगिनत कीड़ों और जानवरों के लिए घर बनाने में सक्रिय रूप से योगदान देती हैं – यहाँ तक कि पेड़ों के लिए भी ! उदाहरण के लिए, विलो और चिनार सहित कई पेड़ प्रजातियाँ अपने प्रजनन के लिए मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।आज बढ़ती आबादी, औधोगिकीकरण, शहरीकरण और विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण इस कीट के आवास नष्ट हो चुकें हैं। खेती के सघन तरीकों का भी इस कीट पर काफी प्रभाव पड़ा है। मौसम पैटर्न में लगातार बदलाव, कृषि में रसायनों व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और बढ़ते वायु प्रदूषण का प्रभाव इस लाभदायक कीट पर पड़ा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि सरकारों, संगठनों, नागरिक समाज और चिंतित नागरिकों को परागणकों और उनके आवासों की रक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस घोषित किया है।
बहरहाल, मधुमक्खियों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका परागण में मदद करना है। वे फूल से फूल तक परागों को ले जाकर पौधों में प्रजनन को बढ़ावा देती हैं, जिससे फलों, बीजों और नए पौधों का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त, वे शहद का भरपूर उत्पादन करती हैं, जो मानवों के लिए एक मूल्यवान खाद्य पदार्थ और औषधीय स्रोत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि परागण की यह प्रक्रिया खाद्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और हमारी धरती के पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण है। इस धरती पर मधुमक्खियों की अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं की यदि हम यहां पर बात करें तो मधुमक्खियां एक ओर जहां वन्यजीवों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर वे मानव संस्कृति को कई तरीकों से, जैसे कि कला, संगीत और त्योहार से भी प्रभावित करतीं हैं। यहां तक कि उनका उपयोग युद्ध के उपकरण के रूप तक में भी किया गया है। मधुमक्खी पालन ग्रामीण आजीविका के लिए महत्वपूर्ण स्त्रोत भी प्रदान करता है। सच तो यह है कि एक कीट के रूप में मधुमक्खियां पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और एक आम परागणकर्ता हैं। यदि बहुत अधिक संख्या में मधुमक्खियां मरतीं हैं तो परागण कम होगा और परागण कम होने का प्रभाव का फ़सल उत्पादन पर व्यापक असर पड़ेगा। मसलन, हम स्वस्थ आहार तक अपनी पहुंच को खो देंगे तथा शहद, दवाएं, फल, मक्का, गेहूं और फूल कम होंगे। मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट के कारण, यह बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है कि हम उनके संरक्षण के लिए प्रयास करें। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मधुमक्षी कीट वर्ग का प्राणी है तथा यह संघ बनाकर रहता पसंद करतीं हैं। इनका यह घोसला (छत्ता) मोम से बनता है तथा इसके वंश एपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं। जानकारी के अनुसार मधुमक्षी नृत्य के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों को पहचान करती हैं। वास्तव में, जंतु जगत में मधुमक्खी ‘आर्थोपोडा’ संघ का कीट है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार दुनिया भर में मधुमक्खियों की 40,000 से ज़्यादा अलग-अलग प्रजातियाँ पाईं जातीं हैं। इनमें भी अकेले कनाडा में, लगभग 1,000 अलग-अलग प्रजातियाँ हैं, जिनमें अल्बर्टा, सस्केचेवान और मैनिटोबा में 67% कनाडाई मधु मक्खी कालोनियाँ हैं। यह भी जानकारी मिलती है कि विश्व में मधुमक्खी की मुख्य पांच प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें क्रमशः भुनगा या डम्भर, भंवर या सारंग,पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी,खैरा या भारतीय मौन तथा यूरोपियन मधुमक्खी को शामिल किया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि कृषि उत्पादन में मधुमक्खियों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। जानकारी के अनुसार उक्त पांचों में से चार प्रजातियां भारत में भी पाई जाती हैं। अंत में यही कहूंगा कि मधुमक्खियां हमारे पर्यावरण, हमारी पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही साथ खाद्य श्रृंखला का मुख्य आधार हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि आज हम धरती के सबसे कीमती इस कीट की मदद, इनका संरक्षण करने की दिशा में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मधुमक्खियां हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन का एक तिहाई परागण करती हैं। ये हमारे आहार के लिए आवश्यक अधिकांश फलों, सब्जियों, बीजों और मेवों के परागण के लिए जिम्मेदार हैं। विशेष रूप से मधुमक्खियां कृषि में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम धरती के इस मेहनती सुपर जीव के संरक्षण की दिशा में काम करें।
सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड
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