उत्तर प्रदेश की राजनीति में गरमाया मीडिया बनाम विपक्ष का मुद्दा, अखिलेश यादव ने दैनिक जागरण पर साधा निशाना
2027 के चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश के विपक्ष को सत्ता से ज्यादा एक तरफ रिपोर्टिंग कर रही मीडिया से खतरा नजर आ रहा
उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों केवल सत्ता और विपक्ष की खींचतान तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अब इसमें मीडिया की भूमिका को लेकर भी गहन बहस छिड़ गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजधानी लखनऊ में आयोजित एक प्रेस वार्ता में प्रमुख हिंदी दैनिक ‘दैनिक जागरण’ पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का गंभीर आरोप लगाया।
अखिलेश यादव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दैनिक जागरण अब पत्रकारिता नहीं, बल्कि भाजपा का “प्रचार मंच” बन गया है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से इस अखबार का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि “जब कोई मीडिया संस्थान जनहित छोड़कर सत्तासीन दल के हितों में कार्य करने लगे, तो उसका विरोध लोकतांत्रिक जिम्मेदारी बन जाती है।”
प्रेस वार्ता में सपा की मीडिया टीम ने कई उदाहरण और आंकड़े प्रस्तुत किए, जिनके अनुसार भाजपा से जुड़ी खबरों को जागरण में प्रमुखता मिलती है, जबकि महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, और किसानों की समस्याओं जैसे मुद्दों को सपा द्वारा उठाए जाने के बावजूद या तो दरकिनार कर दिया जाता है या सीमित कवरेज दी जाती है।
अखिलेश यादव के बयान के बाद लखनऊ सहित कई जिलों में दैनिक जागरण के कार्यालयों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पुलिस प्रशासन ने ऐहतियातन यह कदम उठाया ताकि किसी संभावित तनाव या प्रदर्शन से निपटा जा सके।
इस मुद्दे पर भाजपा ने भी तीखा पलटवार किया। पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि जब राजनीतिक जमीन खिसकती है तो नेता मीडिया को दोषी ठहराने लगते हैं। उन्होंने अखिलेश यादव पर सस्ती लोकप्रियता बटोरने का आरोप लगाया और दैनिक जागरण को निष्पक्ष पत्रकारिता का प्रतीक बताया।
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने सपा प्रमुख के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है और यह चिंता केवल अखिलेश यादव की नहीं, बल्कि पूरे विपक्ष की है। बसपा की ओर से हालांकि कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, लेकिन पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाना तब तक राजनीतिक दलों की प्राथमिकता नहीं होती जब तक वे खुद निशाने पर न हों।
पत्रकारिता जगत में भी इस बयान को लेकर मत विभाजित हैं। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने अखिलेश यादव की बात को लोकतांत्रिक असहमति माना, जबकि कुछ ने सार्वजनिक रूप से किसी मीडिया संस्थान का बहिष्कार करने को खतरनाक परंपरा करार दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम सपा की उस रणनीति का हिस्सा हो सकता है जिसके तहत वह अपने कोर वोट बैंक—विशेषकर मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग—को फिर से संगठित करना चाहती है। इसके अलावा यह कदम पार्टी की मीडिया नीति में बदलाव और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का प्रयास भी माना जा रहा है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि दैनिक जागरण इस पूरे विवाद पर किस तरह प्रतिक्रिया देता है—क्या वह जवाब देगा या केवल अपने पत्रकारिता सिद्धांतों पर कायम रहेगा? वहीं, समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को किस हद तक आगे बढ़ाती है और क्या यह उसकी चुनावी रणनीति का हिस्सा बनता है—यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
फिलहाल इतना तय है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में यह विवाद केवल सियासी बयानबाजी नहीं, बल्कि लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका को लेकर एक नए विमर्श की शुरुआत बनता जा रहा है।
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