आपसी संवाद, जनता की जागरूकता से खत्म होगा नक्सलवाद !
हाल ही में 5 अप्रैल 2025 को दंतेवाड़ा में बस्तर पंडुम महोत्सव में समापन समारोह के दौरान हमारे देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह बात कही है कि अगली चैत्र नवरात्रि तक बस्तर से लाल आतंक समाप्त हो जाएगा।इस दौरान उन्होंने बस्तर की खुशहाली की कामना की। पाठकों को बताता चलूं कि उन्होंने उन्होंने कहा कि ‘बस्तर से नक्सलवाद खत्म होने की कगार पर है। नक्सलियों से अपील है कि वे आत्मसमर्पण करें। नक्सलियों को सरेंडर कराकर गांवों को नक्सल मुक्त कराइये। हर गांव को एक करोड़ मिलेगा।’ कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि ‘बस्तर पंडुम को अंतरराष्ट्रीय दर्जा देने के लिए दुनियाभर के राजदूत जो राजधानी में हैं, उनको बस्तर में लाकर हमारी परंपराओं को, संस्कृति को और आदिवासी बच्चों की कला को पूरे विश्व में पहुंचाने का काम सरकार करेगी।’ वास्तव में,गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलियों से यह कहा है कि ‘आप सब हमारे अपने हैं और आप हथियार डाल कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हों। जब कोई नक्सली मारा जाता है, तो कोई भी खुश नहीं होता।’बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज नक्सलवाद हमारे देश और समाज के लिए एक बड़ी समस्या है, लेकिन अच्छी बात यह है कि मार्च, 2026 तक नक्सल समस्या को खत्म करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह द्वारा नक्सलमुक्त घोषित गांवों को एक करोड़ रुपये की विकास निधि देने तथा नक्सलियों की सुरक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था सरकार द्वारा सुनिश्चित करने की बात यह स्पष्ट दर्शाती है कि सरकार विकास को तवज्जो देकर नक्सलवाद को खत्म करने की ओर लगातार अग्रसर है।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ समय पहले ही मार्च के अंतिम सप्ताह में ही छत्तीसगढ़ में 50 नक्सलियों ने सरेंडर किया था, उसके बाद सुरक्षाबलों ने एक साथ 13 नक्सलियों को गिरफ्तार किया। जानकारी के अनुसार कुल दो जगहों से नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई। जिले के उसूर थाना क्षेत्र के टेकमेटला गांव के पास जंगल से सात नक्सलियों को पकड़ा गया, जबकि बासागुड़ा थाना क्षेत्र से छह नक्सलियों को पकड़ा गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक एक्स पोस्ट में यह बात कही थी कि , ‘नक्सलवाद पर एक और प्रहार! हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने सुकमा में एक अभियान के दौरान 16 नक्सलियों को ढेर कर दिया और स्वचालित हथियारों का एक बड़ा जखीरा बरामद किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को खत्म करने का संकल्प लिया है। हथियार रखने वालों से मेरी अपील है कि हथियार और हिंसा से बदलाव नहीं आ सकता; केवल शांति और विकास ही बदलाव ला सकता है।’ वास्तव में नक्सलवाद का समूह नाश करने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। कितनी अच्छी बात है कि आज सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा के समाज में वापस लौटने में सहायता के लिये वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और सामाजिक पुनर्एकीकरण कार्यक्रम प्रदान कर रही है।
यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित ज़िलों की संख्या 126 (वर्ष 2014) से घटकर मात्र 12 (वर्ष 2024) रह गई है। आंकड़े बताते हैं कि नक्सल-संबंधी घटनाएंँ 16,463 (वर्ष 2004-2014) से घटकर 7,700 (वर्ष 2014-2024) हो गई हैं तथा नक्सलवाद के कारण सुरक्षा बलों की हताहतों की संख्या में 73% की कमी आई है, जबकि नागरिक हताहतों की संख्या में 70% की कमी आई है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि नक्सलवाद, माओवादी विचारधारा से प्रेरित वामपंथी उग्रवाद का एक रूप है, जो सशस्त्र विद्रोह (हिंसा और गुरिल्ला युद्ध) के माध्यम से राज्य को समाप्त करने का प्रयास करता है। यदि हम नक्सलवाद की उत्पत्ति की बात करें तो नक्सलवाद शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से हुई है, जहाँ वर्ष 1967 में शोषक ज़मींदारों के खिलाफ किसानों का विद्रोह हुआ था। नक्सलवाद के कारणों की बात करें तो यह असमान भूमि वितरण और ज़मींदारों, साहूकारों एवं बिचौलियों द्वारा शोषणकारी प्रथाओं के कारण बढ़ा।नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोज़गार के अवसर जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी कहीं न कहीं नक्सलवाद का कारण बना।
नक्सलवाद के पीछे जनजातीय अलगाव भी एक प्रमुख कारण रहा है। इतना ही नहीं, सरकारी तंत्र अनुपस्थिति, बुनियादी सेवाओं की कमी, तथा हिरासत में मृत्यु सहित पुलिस की ज्यादतियों के मामलों ने शिकायतों को और बढ़ा दिया है, जिससे नक्सली विद्रोह को मज़बूती मिली। पाठकों को बताता चलूं कि माओवाद का आदर्श वाक्य, ‘शक्ति बंदूक की नली से निकलती है’ रहा है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक असमानता को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सामाजिक न्याय, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए काम किया जा रहा है,बेरोजगारी,गरीबी को दूर किया गया है। नक्सलवाद की समाप्ति के लिए ऑपरेशन ग्रीन हंट(वर्ष 2009-10),ऑपरेशन समाधान(वर्ष 2017) चलाए गए और वर्तमान में भी अनेक अभियान जारी हैं।सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) जैसे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है। इतना ही नहीं,सलवा जुडूम की शुरुआत छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में माओवादियों के खिलाफ़ सरकार द्वारा समर्थित ‘लोगों के प्रतिरोध आंदोलन’ के रूप में हुई थी। यहां पाठकों को बताता चलूं कि दंतेवाड़ा और बस्तर के आदिवासियों की गोंडी भाषा में, सलवा जुडूम का मतलब शांति मार्च होता है।
लेकिन असल में, इसमें माओवादियों से लड़ने के लिए अधिकारियों द्वारा आदिवासी ग्रामीणों को हथियार दिए गए थे। बहरहाल, गौरतलब है कि शाह के बस्तर प्रवास के दरम्यान छत्तीसगढ़ के 86 नक्सलियों ने हैदराबाद में सामूहिक समर्पण किया है ,जिनमें बीस नक्सल महिलाएं भी शामिल हैं। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से वर्ष 1967 में शुरू किसानों के विद्रोह को नक्सलवाद कहा गया था और इसमें शामिल लोगों को नक्सलवादी या नक्सल कहा जाने लगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि वास्तव में इनको मुख्यतया वामपंथी आंदोलनों से जोड़ा जाता रहा है, जो कि माओवादी राजनीतिक विचारधारा का पालन करते हैं। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि सरकार के अनुसार देश में नक्सल प्रभावित जिले सत्रह से घट कर छह रह गए हैं और छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड और ओडिशा में इनकी(नक्सलवाद) की जड़ें फैली हुई हैं। गौरतलब है कि बिहार के दो जिले बांका और पश्चिमी चंपारण (बगहा) को नक्सल प्रभाव से मुक्त जिला घोषित कर दिया गया है।अब राज्य के आठ जिले ही उनके(नक्सलवाद) प्रभाव वाले रह गए हैं, जिनमें क्रमशः औरंगाबाद, गया, मुंगेर, जमुई, कैमूर, नवादा, लखीसराय और रोहतास शामिल हैं। पाठकों को बताता चलूं कि गया का इमामगंज बिहार का अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था।
दरअसल, नक्सली समय-समय पर सरकार के प्रति नाराजगी और बुनियादी जरूरतों की विभिन्न मांगों को लेकर उग्र प्रदर्शन करते रहे हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि नक्सलवाद आज धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है और आने वाले समय में देश इस समस्या से छुटकारा पा लेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि नक्सली घटनाओं को रोकने के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता देकर विकास को बढ़ावा देना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहना ग़लत नहीं होगा कि नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां शिक्षित और सक्षम हो सकें। इतना ही नहीं,जनजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा के साथ ही साथ उनके साथ संवाद(बातचीत का रास्ता)स्थापित करना बहुत ही आवश्यक है। इसके साथ ही, सुरक्षा बलों को सुदृढ़ करते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। पारदर्शी शासन और स्थानीय भागीदारी के माध्यम से नक्सलवाद पर स्थायी नियंत्रण संभव है। हिंसक गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष टास्क फोर्स का गठन आवश्यक है।
नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना अति आवश्यक है। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण होगा तो कोई दोराय नहीं कि नक्सलवाद की समस्या पर लगाम नहीं लगाई जा सके। नक्सलियों का पुनर्वास, भूमि सुधार और सामूहिक प्रयास भी जरूरी है।गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी खत्म होगी तो नक्सलवाद अपने आप समाप्त हो जाएगा। इतना ही नहीं नक्सलियों को स्थानीय मदद को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। सबसे बड़ी बात नक्सली घटनाओं को पूरी तरह से रोकने के लिए सरकार को सख्त से सख्त कदम उठाने होंगे। इसके साथ ही जनता को भी जागरूक होना होगा।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड
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