प्रेरक प्रसंग : आज न छोड़ेंगे , सब को रंग देंगे
आज मस्ती मजाक ठिठोली के बीच पूरे मोहल्ले में उमंगता व उल्लास का माहोल था। होली है का शोर था चारों ओर बच्चे कच्चे रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। फागुन की बहार में गीतों का गुंजन ढोलक की थाप में थिरकते हुरियारे निकला शुरू हो गये थें। इस रंग-बिरंगी दुनिया में सब रंग अच्छे भी और सच्चे भी । क्योंकि लाल गुलाबी केसरिया नीला पीला व गुलाल की होली रे होली। बहुत अच्छी लगती हैं। बच्चों के हाथों में गुब्बारे व पिचकारी लेकर एक दूसरे से कहते नजर आते हैं, बुरा ना मानो होली है। हम भी अपने दोस्तों के साथ निकलें की तैयारी में थे , तभी मोहल्ले के भल्लू दादा जो बुजुर्ग थे , पर उनकी आवाज में अभी भी जोर था। वह बोल रहे थे रंग बरसें भींगे चुनर वाली रंग बरसें। भल्लू दादा का पोता व अन्य बच्चों के साथ दादा के साथ मस्ती करता नजर आ रहा था। कभी दादा के उपर गुलाल व रंग उड़ता तो कभी पिचकारी से पानी डालता था।
वही मोहल्ले की युवा तरुणाई जो मोहल्ले के थे वह भी उनके पैर छुए रहे थे दादा होली की शुभकामना व बंधाई। हर घर में सभी जगह मोहल्ले में गुलाल लगा कर एक दूसरे को बधाई दे रहे थे। तभी भल्लू दादा के पास श्यामू आया और बोला दादा होली है। दादा बोले हां श्यामू चिंता छोड़ो रंगों से नाता जोड़ो। रंग हमारे जीवन में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। हां दादा सही कहे रहे हों। इसी बीच कुल्फी वाला आवाज लगता हुआ आया होली की स्पेशल भांग की कुल्फी ले लो । भल्लू दादा आवाज लगाते हैं अरे भाई एक कुल्फी मुझे और श्यामू को भी दे दो । अरे दादा आप खाओ। क्यों श्यामू यह तो पर्व आनन्द व मस्ती का है इसमें चकाचक व मस्ती में रहो।
एकजुटता से गलतियों को भूल कर दुश्मन को भी गले लगा कर एक रंग हो जाओ सभी । देखो इन बच्चों को मस्त है ना भुख की चिंता ना किसी से कोई बेर। इन बच्चों की होली देखो दौड़ दौड़ कर कहते जा रहे हैं होली है। हम बड़ों को इन से सीख लेनी चाहिए। तभी दादा ने देखा मोहल्ले के सभी बड़े छोटे बच्चे सब टोली में आ रहें थे। भल्लू दादा ने भी अपनी गुलाल की बोरी निकल कर उन सभी पर रंग गुलाल डालने लगें और कहने लगें, आज नहीं छोड़ेंगे सब को रंग देंगे। यह मस्ती अपनापन रिश्तों में सादगी वातावरण में एकजुटता व सौहार्द के इसी रंग में हम सब होली मानते हैं।
स्वतंत्र लेखक हरिहर सिंह चौहान इन्दौर
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