चुनाव के पहले जनता देवतुल्य बाद में भिखमंगी – फिर हंगामा क्यों ?
खरी-खरी
यही पूर्ण सत्य है – चुनाव के पहले जनता देवतुल्य बाद में भिखमंगी – फिर हंगामा क्यों ?
सरकार से भीख मांगने की आदत लोगों की पड़ गई है। भिखारियों की फौज इकट्ठा करना समाज को मजबूत करना नहीं है ये समाज को कमजोर करना है। जब भी कोई नेता आते हैं तो एक टोकना भर कर कागज मिलते हैं। जब माला पहनायेंगे तो भी एक चिट्ठी पकड़ा देंगे। ये आदत अच्छी नहीं है। लेने के बजाय देने का मानस बनाइए। मैं दावे से कहता हूं कि आप भी सुखी होंगे और संस्कारवान समाज को खड़ा करेंगे। ये भिखारियों की फौज जमा करना समाज को कमजोर करना है
ये अमृत वचन हैं प्रहलाद पटेल के जो उनके मुखारबिंद से मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की सुठालिया में वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी की प्रतिमा अनावरण के अवसर पर मुख्य अतिथि की कुर्सी पर विराजमान होकर प्रस्फुटित हुए। प्रहलाद पटेल वर्तमान में मध्यप्रदेश की मोहन यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री है। इसके पहले ये केन्द्र की मोदी सरकार की कैबिनेट का हिस्सा भी रह चुके हैं। इनका नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल भी शामिल था मगर दिल्ली से भेजी गई पर्ची ने कई सीनियर मोस्ट नेताओं को धत्ता बताते हुए जूनियर मोस्ट मोहन यादव का नाम उगला और कुर्सी की लालसा ने सीनियर नेताओं को अपने जूनियर के आगे हाथ जोड़ कर सजदा करने को मजबूर कर दिया और प्रहलाद पटेल भी उसी कतार में खड़े हुए नेता हैं।
प्रहलाद पटेल के बयान को लेकर मीडिया (गोदी मीडिया को छोड़ कर) और कांग्रेस हाय तौबा मचा रही है। आखिर क्यों ? प्रहलाद पटेल ने कुछ गलत तो कहा नहीं। जो भी कहा है सौ टका सच ही तो कहा है। क्या किसी नेता के आने पर जनता लाइन लगाकर कागज नहीं देती। क्या माला पहना कर चिट्ठी नहीं पकडाती। पकडाती है न और यही तो प्रहलाद पटेल ने कहा है कि नेताओं से कुछ मांगने के लिए कागज के टुकड़े पकड़ाना भिखमंगापन ही तो है । प्रहलाद ने आगे कहा कि लेने के बजाय देने का मानस बनाईये मैं दावे से कहता हूं कि आप भी सुखी होंगे और संस्कारवान समाज को खड़ा करेंगे। ये भिखारियों की फौज जमा करना ये समाज को कमजोर करना है। ऐसा किसी शहीद का नाम जानते हैं जिसने भीख मांगी हो, मुझे नाम बताना।
जिस पार्टी को प्रहलाद पटेल बिलांग करते हैं उसमें कोई शहीदी नाम तो नजर नहीं आता है। हां जहां तक भीख मांगने की बात है तो इतिहास बताता है कि पार्टी जिसे भगवान की तरह पूजती है उसने शहीद होने के बजाय अंग्रेजों से चिट्ठी लिख-लिख कर अपने प्राणों की भीख मांगी थी इतना ही नहीं अपने जीवन यापन के लिए पेंशन की भीख मांगी थी । आज जो देश की प्रधानमंत्री वाली कुर्सी पर चिपके हुए हैं उनने तो अनेकों बार सार्वजनिक मंचों पर जनता से कहा है कि उनने कई सालों तक भीख मांग कर अपना पेट पाला है।
हर नेता चाहे वह किसी भी पार्टी का हो अधिकतम पांच साल में (पहले भी) एक बार जनता से उसके दरवाजे वोट की भीख मांगने आता ही आता है (नेता से बड़ा भीखमंगा धरती पर दूसरा कोई जीव नहीं है) और जनता उसको इतनी बड़ी भीख देती है कि वह अपनी सात पुश्तों की व्यवस्था एक बार चुनाव जीत कर कर लेता है। यह आज के राजनेताओं का नग्न सत्य है कि उन्हें रोजगार की मांग करने वाले, कमीशनखोरी का विरोध करने वाले, करप्शन के खिलाफ आवाज उठाने वाले, किसान अधिकार की मांग करने वाले, अपने हक की मांग करने वाले, चुनाव के वक्त पार्टी द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र को पूरा करने की याद दिलाने वाली जनता, जिसे चुनाव के पहले मालिक – देवतुल्य जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है वह, चुनाव के बाद भिखमंगी ही दिखाई देती है।
प्रधानमंत्री तो देश से लेकर विदेश तक यह कहते हुए नहीं थकते कि भारत की 80 करोड़ जनता सरकार द्वारा दिये गये 5 किलो अनाज से अपना पेट भरती है, यह भी तो सरकार द्वारा जनता को दी जाने वाली एक सरीखी भीख ही तो है। इसी तरह की एक भीख लाडली बहना लाडली लक्ष्मी के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को दी जाती है। मतलब देश में भिखारियों की फौज तो देश और प्रदेश की सरकारें इकट्ठा कर रही हैं। प्रहलाद पटेल का ईशारा इसी ओर तो है कि देश की मोदी सरकार भिखारियों की फौज इकट्ठा कर देश को कमजोर करने में लगी हुई है।
वैसे इस तरह की बयानबाजी कोई पहली बार नहीं हुई है। जब जब जिसको भी मंच, माला, माईक और सत्ता मिली है उसने जनता को गुलाम भिखारी और इससे भी निम्नस्तरीय केटेगरी में खड़ा किया है। महाराष्ट्र में भी अजीत पवार ने कहा था कि “वोट दिया तो मतलब ये नहीं कि मेरे मालिक बन गये। क्या आपने मुझे खेतिहर मजदूर बना दिया है” । कहा जा सकता है कि नेताओं की इस घटियापने वाली मानसिकता के लिए भारत की जनता ही दोषी है। जो बार – बार अपने जमीर, आत्मसम्मान, अपनी अस्मिता को अपने ही पैरों तले कुचल कर ऐसे ही लोगों को चुनती चली आ रही है जो उसे सरेराह अपमानित करने से नहीं चूकते हैं। नेता डरता है वोट से इसलिए नेताओं की दूषित मानसिकता में बदलाव आयेगा वोट से। ट्यूटर, इंट्राग्रास, व्हाटसएप पर उछलकूद की नौटंकी करने से कुछ नहीं होने वाला। बदलाव तो तब आयेगा जब जनता पहचानेगी और उपयोग करेगी अपनी ऊंगली की अजेय ताकत को और कुचलेगी नेताओं के विषवमन करते फन (मुंह) को ।
प्रहलाद पटेल अब अपने भिखारियों की फौज वाले बयान पर सफाई दे रहे हैं कि जिस मंच से उन्होंने ये बात कही है वह राजनीतिक मंच नहीं था सामाजिक कार्यक्रम का मंच था उसमें दूसरे दल के नेता भी मौजूद थे। बात तो सही है कार्यक्रम वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी की प्रतिमा अनावरण का था और प्रहलाद पटेल लोधी समाज से आते हैं। मगर वे ये क्यों भूल गये नेता मंत्री जहां भी खड़े होकर बक – बक करना शुरू करते हैं वहां न चाहते हुए भी राजनीतिक मंच बन जाता है। दूसरे दल के नेता तो अपने राजनीतिक फायदे के लिए मतलब की बात लपकने तैयार बैठे ही रहते हैं। वैसे भी 2028 – 2029 तक सत्ता पार्टी के लोग जनता को चाहे जितना गरियायें उसको कोई नुकसान होने वाला नहीं है। कड़वी सच्चाई यह भी है कि जनता तो भेड़ बकरियों की भांति है जब चरवाहा चारा दिखाना शुरू करेगा वह उसके पीछे – पीछे चल पड़गी।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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