महाशिवरात्रि पर पूरे दिन भद्रा, जल चढ़ाने के लिए मिलेगा बस इतना समय
महाशिवरात्रि हिन्दू परंपरा का एक बहुत बड़ा पर्व है. सामान्यतः इसे चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिवजी का प्राकट्य हुआ था. शिव जी का विवाह भी इस दिन माना जाता है.

प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
भगवान शिव के भक्तों को हर साल महाशिवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता है. हर साल फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इस दिन चारों ओर मंदिरों, शिवालयों में बम-बम भोले के जयकारे गूंज रहे होते हैं. भक्त भाव-विभोर होकर पूजा उपासना में लीन रहते है. दरअसल, चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है. आइए आपको महाशिवरात्रि की महिमा और चार पहर की पूजा का शुभ मुहूर्त बताते हैं.
महाशिवरात्रि की महिमा
महाशिवरात्रि हिन्दू परंपरा का एक बहुत बड़ा पर्व है. सामान्यतः इसे चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिवजी का प्राकट्य हुआ था. शिव जी का विवाह भी इस दिन माना जाता है. इस दिन व्रत, उपवास, मंत्रजाप और रात्रि जागरण का विशेष महत्व है
महाशिवरात्रि की तिथि
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 11.08 बजे शुरू होगी इस तिथि का समापन 27 फरवरी को सुबह 08.54 मिनट पर होगा. महाशिवरात्रि में रात्रि के पूजन का विधान है इसलिए 26 फरवरी को रात में महादेव का पूजन किया जाएगा.
भद्रा का साया और जल चढ़ाने का मुहूर्त
ज्योतिष गणना के अनुसार, इस बार महाशिवरात्रि पर भद्रा का साया रहने वाला है. हालांकि जानकार बताते हैं कि भद्रा का असर इस बार पालात लोक में है और ज्योतिष के अनुसार पाताल की भद्रा का पृथ्वी पर कोई असर नहीं होगा. इसलिए आप निसंकोच शुभ पहर में महादेव की पूजा कर सकते हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ा सकते हैं.
महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक के लिए दिन के प्रत्येक पहर में शुभ मुहूर्त रहेगा. 26 फरवरी को सुबह 06.47 से 09.42 तक आप शिवलिंग पर जल चढ़ा सकते हैं. सुबह ही 11.06 से दोपहर 12.35 तक शिवलिंग पर जल अर्पण कर सकते हैं. दोपहर में ही 03.25 से 06.08 तक का जलाभिषेक का शुभ मुहूर्त है. जबिक रात में 08.54 से रात 12.01 बजे तक शिवलिंग का श्रृंगार किया जा सकता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
- प्रथम प्रहर में पूजन समय-26 फरवरी शाम 06.19 से रात्रि 09.26 तक
- दूसरे प्रहर में पूजन समय- रात 09.26 से 27 फरवरी मध्य रात्रि 12.34 तक
- तीसरे प्रहर में पूजन समय- 27 फरवरी मध्य रात्रि 12.34 से प्रातः 03.41 तक
- चतुर्थ प्रहर में पूजन समय- 27 फरवरी को प्रातः 03.41 से सुबह 06.48 तक
महाशिवरात्रि पूजन विधि
महाशिवरात्रि के चारों पहर के पूजन में भगवान शिव का रुद्राभिषेक होता है और उसके बाद हवन किया जाता है. महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शंकर की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक करें. इसके पश्चात आठ लोटे केसर मिश्रित जल अर्पित करें. पूरी रात दीप प्रज्वलित रखें और चंदन का तिलक लगाएं. भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, गन्ने का रस, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र एवं दक्षिणा अर्पित करें. अंत में केसर युक्त खीर का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें.
इस पावन दिन पर “ऊं नमो भगवते रूद्राय”, “ऊं नमः शिवाय रूद्राय शम्भवाय भवानीपतये नमो नमः” मंत्रों का जाप करें और शिव पुराण का पाठ अवश्य करें. महाशिवरात्रि की रात्रि में जागरण का भी विशेष महत्व है.
महाशिवरात्रि पर जरूर करें ये खास उपाय
- महाशिवरात्रि की रात्रि में शिव मंदिर में जाकर विधि-विधान से पूजा अर्चना करें और शिवलिंग के पास देसी घी का दीपक जलाएं. ऐसा करने से धन से जुड़ी समस्या से छुटकारा मिलता है.
- यदि आपके मंदिर में शिवलिंग नहीं है तो महाशिवरात्रि के दिन अपने घर पर छोटा सा शिवलिंग लाए और विधि-विधान से अभिषेक करके स्थापित करें. ऐसा करने से घर से दुख दरिद्रता दूर होती है.
- शिवरात्रि पर भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान चालीसा का पाठ करने से दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी परेशानियां दूर होती हैं.
शिवरात्रि का ज्योतिषीय महत्व
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर अर्थात स्वयं शिव ही चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। यही वज़ह है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में चतुर्दशी तिथि को अत्यंत शुभ कहा गया है। गणित ज्योतिष की गणना के मुताबिक, महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण में होते हैं, साथ ही ऋतु-परिवर्तन भी हो रहा होता है।
ज्योतिष के अनुसार, ऐसी भी मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अत्यंत कमज़ोर होते हैं और भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। अतः शिवजी की पूजा एवं उपासना से व्यक्ति का चंद्र मज़बूत होता है जो मन का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य शब्दों में कहें तो शिव जी के पूजन से इच्छा-शक्ति ढृंढ होती है, साथ ही अदम्य साहस का संचार होता है।
महाशिवरात्रि कथा
महाशिवरात्रि से जुड़ीं अनेक कथाएँ प्रचलित हैं इन्ही में से एक कथा के बारे में हम जानेंगे। पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घनघोर तपस्या की थी। इस कथा के परिणामस्वरूप फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उस समय से ही महाशिवरात्रि को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
इसके अतिरिक्त, गरुड़ पुराण में महाशिवरात्रि से जुड़ीं एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार पर गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। थकान एवं भूख-प्यास से परेशान होकर एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। अपने शरीर को आराम देने के लिए निषादराज ने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का और जल की कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी गिर गई। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे जा गिरा और जिसे उठाने के लिए वह शिवलिंग के सामने झुका। इस तरह अनजाने में ही उसने शिवरात्रि पर शिव पूजा की प्रक्रिया पूरी कर ली। मृत्यु के उपरांत जब यमदूत उसे लेने के लिए आए, तब शिव जी के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
इस प्रकार अज्ञानतावश महाशिवरात्रि पर किये गए शिव जी के पूजन से शुभ फल की प्राप्ति हुई, अपनी सोच और श्रद्धभाव द्वारा किये गए देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी सिद्ध होगा।
आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
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