व्यंग लेख शीर्षक – क्या लोकसेवकों के यहां भरा भण्डार है
छोटे मोटे दुबले पतले कैसे भी कर्मचारी हों कोई से भी विभाग में उनका कुनबा हो भ्रष्ट तंत्र की दीमक उस पर अपना काम दिखा ही देती है। उसको धन सम्पदा की कोई कमी नहीं रहती है। उनका खाजाना मानों स्वयं कुबेर देवता ही बड़े बड़े घड़ों में भर रहें होते हैं। आज कल जहां भी देखो ऐसे ही धन दौलत के लोभी मिल रहे हैं जो छोटी मोटी नौकरी के बल पर ना जाने कौन सी विधा से वह धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर लेते हैं यह देखकर दिमाग का दही हों जाता है।अरे कोई कर्मचारी जिनकी कार में कई किलो सोना, नगदी की माया ही माया हो और वह भी शहर से दूर जंगल में पड़ी मिले ? जिसका वह सब माल है वह स्वयं दूसरे देश में यानि विदेशी धरती पर मस्ती आंनद उठा रहा हो । यह क्या है भाई समझ में नहीं आता। क्या लोकसेवक का भरा भण्डार है। यह कोई देवी देवताओं पीर फकीरों का आशीष है जो सिर्फ इन्हें ही मिलता है। तभी तो अनुकंपा नियुक्ति पर रहने वाला व्यक्ति के पास यह सब माला माल मिल रहा है। अरे यह क्या है कहीं कोई जादू की छड़ी तो नहीं मिल गई थी या उसके पास कोई पारस पत्थर तो नहीं था ? नाम लोक सेवक काम धंन संग्रह मानों चांदी की चम्मच सरकारी नौकरी में ही रहतीं हैं। ऐसा लगता है ऐसे रिश्वतखोर लोगों की सब उंगली कड़ाई में ही रहतीं हैं। तभी तो फल फूल रहे होते हैं चाहे साहब हो या कर्मचारी । मानों विधाता ने एक अलग लाईन खेच रखीं हो उन लोगों की हाथों की लकीरों को। तभी तो इतने धन दौलत के इतने भण्डार मिल रहे हैं जब कार्यवाही होती है तब यह राजा महाराजाओं की तरह अपनी सभी काली कमाई को जनता के समाने भण्डार में खुलता हुआ दिखाया जाता है। तो जनता भी दांतों तले उंगलियां लेती है। भ्रष्ट लोगों का यही चित्रण देखने को तभी मिलता है जब भण्डार खोला जाता है।
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