शनिदेवजी की पूजा साधना
शनिदेवजी का तांत्रिक मंत्र-
“ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।”
शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात् शनिवार को पीपल वृक्ष में मिश्री मिश्रित दूध से अर्घ्य देने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पीपल के नीचे सायंकालीन समय में एक चतुर्मुख दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी ग्रह दोषों की निवृति हो जाती है।
पुराणों में वर्णित है कि पिप्पलाद ऋषि ने अपने बचपन में माता पिता के वियोग का कारण शनिदेव को जानकर उन पर ब्रह्म दंड से प्रहार कर दिया, जिससे शनि देव घायल हो गए।
देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ऋषि ने शनि देव को इस बात पर क्षमा किया कि शनिदेव जन्म से लेकर १६ साल तक की आयु तक एवं उनके भक्तों को कभी भी कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने से ही शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है।
शिवपुराण के अनुसार शनिवार के दिन पिप्पलाद स्तोत्र का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि की पीड़ा शान्त हो जाती है। ।
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