खरी-खरी : बच्चे जलें – मरें चलेगा मगर बेरहम हत्यारे हुक्मरानों का सड़क छाप प्रदर्शन नहीं रुकना चाहिए
नाइजीरिया के अखबारों में महिमामंडित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छापी गई फोटोज पर झांसी में महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में हुए अग्निकांड में कंकाल में तब्दील हो चुके तकरीबन एक दर्जन नवजातों के फोटोज कालिख पोतते दिख रहे हैं। सबसे बड़ा सवालिया निशान तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर लग गया है। लोगों का सवाल तो बेरहम हत्यारे हुक्मरानों से यही है कि बटेंगे तो कटेंगे का देशव्यापी नारा लगा कर चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण करने वाले नवजातों के शवों को देखकर बतायें कि उनमें कौन हिन्दू और कौन मुसलमान है।
देशवासी सही ही तो कहते हैं कि जिनकी अपनी कोई औलाद नहीं है वे दूसरों की औलादें छीनकर चुनाव जीतने में व्यस्त और मस्त रहते हैं। कहा जा सकता है कि भारत की आत्मा वाकई मर चुकी है। तभी तो अब अस्पतालों को भी श्मशान में बदला जा रहा है। एक ओर बेरहम हत्यारे हुक्मरान चुनावी रैलियों में व्यस्त थे और दूसरी ओर महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में भर्ती नवजात एक – एक सांस को विलख रहे थे। इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है कि अस्पताल का जो वार्ड दर्जन भर नवनिहालों की कब्रगाह बन गई दसक महीने पहले बिकाऊ मीडिया उस वार्ड में विश्वस्तरीय सुविधाओं का बखान करते हुए प्रचार-प्रसार कर रहा था।
बताया जाता है कि अस्पताल में रखे अग्निशमन संयंत्र पहले ही मर (एक्सपायर) चुके थे। इतना ही नहीं आकस्मिक घटना की सूचना देने वाला अलार्म भी कोमा में चल रहा था। मतलब यह कि महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज खुद सन्निपात की दशा में है। वैसे देखा जाय तो यह हालत झांसी मेडिकल कॉलेज भर की नहीं है कमोबेश ऐसे हालात पूरे देशभर के मेडिकल कॉलेजों के हैं । सरकारी जिला, कस्बाई और देहाती इलाकों के अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है। सरकार ने हर एक नवजात शिशु की मौत की कीमत पांच लाख रुपये और घायलों की पचास हजार रुपए आंकी है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन तो अपनी गलती मानने के बजाय लीपापोती करते हुए निचले तबके के किसी कर्मचारी को बलि का बकरा बनाने में जुट गया है।
हर घटना के बाद परम्परागत तरीके से बनाई जाने वाली जांच कमेटी यहां भी बना दी गई है। जिसमें महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण, निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं सेवायें, अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं सेवायें तथा महानिदेशक अग्निशमन द्वारा नामित अधिकारी को शामिल किया गया है। यह कमेटी आग लगने के प्राथमिक कारण, लापरवाही, दोषी की पहचान, भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचाव की सिफारिश के एजेंडे में काम कर अपनी रिपोर्ट देगी। रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई होती है इसे आमजन से ना तो कभी साझा किया गया है ना ही आगे किया जायेगा।
इस घटना के दौरान दो ऐसे नजारे सामने आये जिसमें एक ने देश को शर्मसार कर दिया तो दूसरे ने बटेंगे तो कटेंगे का जाप करने वालों के चेहरे पर कालिख पोतते हुए देशवासियों को गर्व करने का मौका दिया। शर्मनाक यह है कि अस्पताल में मची चीख पुकार के बीच अस्पताल प्रशासन स्वास्थ्य मंत्री के लिए रेड कारपेट बिछाते दिखाई दे रहा था। सरकार के मुखिया तो अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए रामनामी का सहारा लेते नजर आ रहे हैं। गौरव की बात यह है कि याक़ूब मंसूरी नामक व्यक्ति ने दर्जन भर से ज्यादा नवजातों को जलने से बचाया जबकि वह खुद की जुड़वां बेटियों को आग में जलने से ना बचा सका।
हकीकत तो यह है कि हिन्दू रो रहा है बेरोजगारी से, गरीबी से, भूख से, दर्द से, दुख से, दमन से। राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए उछाले जाने वाले जुमले “हिन्दू खतरे में है” झांसी मेडिकल कॉलेज की घटना और अखबारों के प्रत्येक पन्ने पर छपने वाली रेप और यौन उत्पीड़न की खबरें बताती हैं कि हिन्दू खतरे में नहीं है। बेटे बेटियों का भविष्य खतरे में है और अब तो उनका जीवन तक खतरे में पड़ गया है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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