चंडीगढ़ में किसानों का संघर्ष: कृषि मंत्री ने मटका चौक पर किसानों का ज्ञापन लिया, कहा- सीएम के सामने वकील बनकर पेश करूंगा पक्ष
चंडीगढ़ – पंजाब के किसानों ने अपने मुद्दों को लेकर सोमवार को पूरे दिन संघर्ष किया। यह आंदोलन दो अलग-अलग मंचों पर केंद्रित था। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने एक महापंचायत का आयोजन किया, जबकि भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) और पंजाब खेत मजदूर यूनियन के बैनर तले एक अन्य गुट ने सेक्टर-34 के मेला ग्राउंड से मटका चौक तक मार्च निकाला। इस मार्च में लगभग एक हजार किसानों ने भाग लिया।
कृषि मंत्री ने लिया ज्ञापन
मटका चौक पर पहुंचकर पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने किसानों का ज्ञापन स्वीकार किया और उनके संघर्ष की सराहना की। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह किसानों के वकील बनकर मुख्यमंत्री के सामने उनके मुद्दों को रखेंगे। दूसरी ओर, किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने घोषणा की कि जब तक पंजाब विधानसभा का सत्र चलेगा, तब तक उनका मोर्चा जारी रहेगा।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
पुलिस ने इस आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। करीब 700 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था और पैरामिलिट्री फोर्स भी लगाई गई थी। पुलिस ने सुनिश्चित किया कि आंदोलन के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो। इसके लिए सड़कों पर ट्रक आदि खड़े किए गए थे।
महापंचायत के मुद्दे
SKM के नेता बलबीर सिंह राजेवाल और रूलदू सिंह मानसा ने महापंचायत में जल संकट और खेती के संकट जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। किसानों ने भूमिगत जलस्तर के गिरने और प्रदूषित पानी की समस्या को गंभीर बताया। इसके अलावा, राजस्थान से पानी की रॉयल्टी और DAP खाद की कमी जैसे मुद्दे भी उठाए गए। किसान नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि सभी किसान संगठनों को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी चाहिए।
प्रदर्शन में कोई सहमति नहीं बन पाई
प्रदर्शन से पहले, बीकेयू (एकता उगराहां) के विधानसभा की ओर निकाले जाने वाले मार्च को रोकने के लिए प्रशासन और यूनियन के बीच करीब 3 घंटे तक मीटिंग चली, लेकिन कोई सहमति नहीं बन पाई।
आगे की रणनीति 5 सितंबर को तय होगी
किसान नेताओं ने बताया कि 2 सितंबर को पंजाब विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। यूनियन की ओर से सरकार को मांग पत्र सौंपा जाएगा। इसके बाद 5 सितंबर को किसान नेताओं की बैठक होगी, जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।
किसानों ने कहा कि वे पिछले डेढ़ साल से खेती नीति बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
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