क्यों तलाशी जा रही है नायब सिंह सैनी के लिए सुरक्षित सीट ?
अब पछताए होत का जब भाजपा की ही चिड़िया चुग गई हरियाणा का चुनावी खेत
हरियाणा बनने से लेकर अब तक की पूरा सार संक्षेप की खरी खरी
आग लगी हमरी झुपडिया में हम गायें मल्हार
कंगना ने फंदा डाल दिया भाजपा के गले
हरियाणा भारत का अकेला ऐसा राज्य है जिसने न केवल राजनीति की दिशा बदली है बल्कि ऐसा आयाम स्थापित किया है जिसकी चर्चा के बिना देश की राजनीति कोई मायने नहीं रखती है। देश की राजनीति में दलबदल का जन्मदाता हरियाणा ही है जिसका मुहावरा “आया राम गया राम” आज भी राजनीतिक क्षेत्र में कालजयी बना हुआ है। हरियाणा के तीन राजनीतिक लालों की चर्चा के बिना हरियाणा की राजनीति बेमानी लगती है। पंजाब से अलग होकर 1 नवम्बर 1966 में हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया था। तब यहां विधानसभा की सदस्य संख्या 81 थी। प्रदेश की विधानसभा का पहला चुनाव 1967 में हुआ था जिसमें कांग्रेस 48 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी। भारतीय जनसंघ (जिससे बीजेपी उभरी) ने 12, रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (आरपीआई) ने 2, स्वतंत्र पार्टी ने 3 एवं निर्दलियों ने 16 सीटें जीती थी। 10 मार्च 1967 को कांग्रेस ने भगवत दयाल शर्मा की अगुआई में सरकार बनाई थी। मगर हप्ते के भीतर ही कांग्रेस के दर्जनभर विधायकों ने दलबदल कर अपनी पार्टी की सरकार गिरा दी। कहा जा सकता है कि दलबदल की परम्परा की शुरुआत कांग्रेस ने की। निर्दलीय विधायकों ने संयुक्त मोर्चा या संयुक्त विधायक दल (एसपीडी) नाम की पार्टी का गठन किया और अपने खेमे में 48 विधायक जमा कर लिए जाहिर है कांग्रेस के दूसरे विधायक भी कांग्रेस छोड़कर एसपीडी के कुनबे में शामिल हुए होंगे। एसपीडी ने 24 मार्च 1967 को राव वीरेन्द्र के नेतृत्व में सत्ता सम्हाली। राव वीरेन्द्र ने 7 महीने बाद ही 2 नवम्बर 1967 को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी। विधानसभा भंग कर दी गई। मगर इस बीच जो हुआ उसने राजनीति में एक नये शब्द को जन्म दिया। 1967 के पहले विधानसभा चुनाव में एससी के लिए आरक्षित हसनपुर निर्वाचन क्षेत्र (अब होडल) से गया राम नामक व्यक्ति ने बतौर निर्दलीय चुनाव जीता। गया राम ने भगवत दयाल शर्मा की अगुवाई में बनी कांग्रेस सरकार को ज्वाइन कर लिया। जब राव वीरेन्द्र एसपीडी की सरकार बनाने जा रहे थे तो शपथ ग्रहण के ठीक पहले गया राम कांग्रेस छोड़कर एसपीडी में शामिल हो गए मगर कुछ ही घंटे के भीतर वे कांग्रेस में वापस आ गए। घंटे – दो घंटे ही गुजरे थे कि गया राम ने फिर से एसपीडी ज्वाइन कर लिया (9 घंटे के भीतर 3 बार दलबदल)। सीएम राव वीरेन्द्र ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गया राम का परिचय कराते हुए कहा कि गया राम अब आया राम हैं। यही वह अप्रत्याशित कदम था जब भारतीय राजनीति में नये शब्द “आया राम गया राम” का जन्म हुआ। जिसने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया। इस समस्या से निपटने के लिए ही 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने दल बदल विरोधी कानून (ANTI DEFECTION LAW) पेश किया जिसे 52 वें संशोधन के रूप में संविधान में शामिल किया गया।
1968 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत के साथ चौधरी बंशीलाल के नेतृत्व में सत्ता सम्हाली। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बंशीलाल को दिल्ली आने को कहा तो बंशीलाल अपना राजपाट बनारसी दास गुप्ता को सौंप दिल्ली दरबार पहुंच गए। आपातकाल के बाद 1977 में चौधरी देवीलाल जनता पार्टी के साथ सत्ता में आये। 1980 के विधानसभा चुनाव में एकबार फिर कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और इसबार चौधरी भजनलाल को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई। इसके बाद हरियाणा की कमान हरियाणा के इन्हीं तीन लालों के हाथों अदला-बदली होती रही और ये हरियाणा के तीन लाल के नाम से भारतीय राजनीति में अमर हो गये। 1989 में तो हरियाणा के तीनों लाल प्रदेश की राजनीति छोड़कर देश की राजनीति में शामिल होने लोकसभा का चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंच गए। आगे चलकर कांग्रेस के लाल चौधरी बंशीलाल और चौधरी भजनलाल ने अपनी-अपनी क्षेत्रीय पार्टियों का गठन किया।
आज भी हरियाणा के इन तीन लाल बंशी – देवी – भजन के वारिस अपने बाप दादाओं की राजनीतिक विरासत सम्हालने राजनीति में सक्रिय हैं। यह अलग बात है कि उनका अपने बाप दादाओं की तरह राजनीतिक दबदबा नहीं है। 2024 के विधानसभा चुनाव में तीनों लाल के वारिस अपने गिरते ग्राफ तथा अपनी निजी महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए भाजपा की गोद में बैठे हुए हैं। कांग्रेस खासकर नेहरू – गांधी के वंशवाद – परिवारवाद को कोसने वाली नरेन्द्र मोदी की भाजपा हरियाणा विधानसभा के चुनाव में अपनी नैया पार लगाने के लिये इन्हीं तीन लाल के वंशवाद – परिवारवाद के भरोसे दिखाई दे रही है। जिसका सबसे बड़ा सबूत है हरियाणा में दशक तक राज करने वाली भाजपा के सिटिंग मुख्यमंत्री का अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश करना । बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री सैनी को खुद की लोकप्रियता पर इतना भी भरोसा नहीं है कि वे अपनी परम्परागत सीट से चुनाव लड़कर फिर से विधानसभा पहुंच सकें। इसलिए वे अपने लिए सबसे सुरक्षित सीट ढूंढ रहे हैं।
इसके पूर्व लोकसभा के पहले तकरीबन 8 साल तक सूबे की कमान संभालने वाले कद्दावर नेता को हटाकर सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया था (नकारात्मकता से बचने के लिए) मगर इसके बाद भी नतीजा रहा “ढाक के तीन पात” । लोकसभा चुनाव में भाजपा अपनी आधी सीटें हार कर आधे पर सिमट कर रह गई। दूध का जला छाछ भी फूंक – फूंक पीना चाहता था लेकिन भाजपा की नई नवेली बड़बोली सांसद कंगना रनौत के एक विवादास्पद बयान ने भाजपा के लिए कब्र ही खोद कर रख दी है बस हरियाणा में पार्टी का सुपुर्द – ए – खाक होना बाकी है, भले ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कंगना को मुंह बंद रखने की हिदायत देते हुए खुद को कंगना रनौत के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। मंडी से भाजपा की सांसद बालीवुड क्वीन कंगना रनौत ने एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए कहा कि “किसान आन्दोलन के दौरान हिंसा हुई, बलात्कार हुए, हत्याएं हुईं। आन्दोलन में विदेशी ताकतों का हाथ था अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व नहीं होता तो पंजाब को बांग्लादेश बना दिया गया होता। किसान बिल को वापस ले लिया गया वर्ना इन उपद्रवियों की बहुत लंबी प्लानिंग थी। वे देश में कुछ भी कर सकते थे”। ऐसा लगता है कि मोदी की गुड लिस्ट में अपने नम्बर बढ़ाने के लिए ही कंगना भाजपा की नीतियों का समर्थन कर रही थी। ध्यान रहे कि किसान आज भी केन्द्र सरकार की वादाखिलाफी को लेकर दिल्ली कूच करने के लिए महीनों से हरियाणा – दिल्ली बार्डर पर जमा हैं। खाप पंचायतें लगातार बैठकें कर रही हैं। ऐन चुनाव में कंगना ने बैठे ठाले आग में घी डालकर हरियाणा की जनता खासतौर पर किसानों को भड़का दिया है। इसके पहले भी कंगना रनौत किसान आन्दोलन में आन्दोलनरत किसानों को लेकर खालिस्तानी जैसे जहर बुझे जबानी तीर चलाती रही है मगर भाजपा हाईकमान कंगना का मुंह बंद करने के बजाय उसकी पीठ थपथपाता रहा है। जिसका भुगतमान भी कंगना को सांसद बनते ही एक महिला सुरक्षा कर्मी का थप्पड़ खाकर भुगतना पड़ा था। अब पछताए होत का जब भाजपा की ही चिड़िया चुग गई हरियाणा का चुनावी खेत।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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