स्वतंत्रता दिवस पर भी नहीं मिलती महिलाओं को घर के कामों से छुट्टी !
महिलाओं का जीवन होता है कठिन, आखिर छुट्टी मिलना इतना क्यों मुश्किल है?
प्रेरणा ढिंगरा
हर एक इंसान अपने जीवन में काम करता है। कोई ऑफिस जाता है तो कोई बिजनेस संभलता है। पर हर एक व्यक्ति हफ्ते में एक दिन की छुट्टी लेता है, ताकि वह अपने हफ्ते की थकान को मिटा सके। लेकिन, हम कभी भी इस विषय में महिलाओं के बारे में नहीं सोचते। हिंदुस्तान में अगर महिलाएं जॉब पर भी जाती है तब भी उन्हें घरेलू कामों से छुट्टी नहीं मिलती। फिर चाहे वह 15 अगस्त ही क्यों ना हो। घर पर रहते हुए भी सबको संभालना और सबका खाना बनाना से लेकर घर की साफ सफाई का बोझ उनके सर पर आ जाते हैं।
घरेलू कामों के चलते आज भी भारत में महिलाओं को इतना भी समय नहीं मिलता कि वह एक दिन के लिए बाहर जा सके। अगर एक महिला सिर्फ घर का काम करती है तब तो वह चार दिवारी के अंदर ही अपनी दुनिया बसा लेती है, अगर वह कमाती है तब भी छुट्टी वाले दिन अपने घर को और घर के कामों को सौंप देती है। किसी भारतीय महिलाओं के जीवन को तीन शब्दों में बयां किया जाए तो वह शब्द होंगे काम, काम और काम। गरीब घर तक से अमीर घर तक की महिलाएं अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाती। पति, बच्चों और परिवार की सेवा में अपना पूरा जीवन निकाल देती है। फिर भी अक्सर घरों में उनको ऐसी बातें सुनने को मिलती है की “तुम काम ही क्या करती हो?।” समाज में भी आपने देखा होगा कि जब एक पुरुष अपने काम से लौट के आता है और उसका बच्चा उसके करीब आने की कोशिश करता है तब परिवार के लोग यह कह देते हैं कि “लड़का है थक कर आया होगा, बच्चों को कोई और संभाल लेगा।” पर यही अगर महिला थक कर आती है तो ऐसी बातें सुनने को मिलती है जैसे “इतना भी क्या काम कि अपने बच्चों को वक्त ही ना दे सको।” ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर क्यों नहीं मिल पाती महिलाओं को घर के काम से छुट्टी? क्यों महिलाएं रसोई मैं अपनी पूरी जिंदगी निकाल देती है? एक पत्नी अपने पति के चलते अपनी खुशियों तक को दबा देता है। पूरे परिवार की पसंद और नापसंद को ध्यान में रखने वाली महिला अपनी ही पसंद और नापसंद भूल जाती है।
चलिए जानते हैं क्यों नहीं मिलती महिलाओं को घर के कामों से आजादी
यह सिर्फ काम के घंटे की बात नहीं है। कामों से आराम तो मिल जाता है पर जिम्मेदारियां से आराम मिलन उतना ही मुश्किल हो जाता है। यानी जब एक महिला अपने घर से बाहर कदम निकालने की सोचती है तब कई सारे सवाल खड़े हो जाते हैं जैसे घर समय से आना क्योंकि खाना बनाना है, बच्चों का ध्यान कौन रखेगा?, मेरे जाने की पीछे अगर किसी को मेरी जरूरत पड़ी तब वह क्या करेंगे?, साफ सफाई और घर के बुजुर्ग लोगों की दवाइयां और उनका समय से खाना पीना भी तो जरूरी है। ऐसे सवालों के चलते महिलाएं अपनी जिम्मेदारियां के तले दब जाती है।
एक आम महिला की जिंदगी की शुरुआत सुबह बच्चों को तैयार करके उनके टिफिन बनाने और उन्हें स्कूल समय से भेजना से शुरू होती है। फिर पति को उठाने, परिवार को संभालना, खाना बनाने, साफ सफाई जैसे काम उनके हाथ खुद बांध देते हैं। अगर मेहमान आने वाले हो तब उनका काम दुगना हो जाता है। अक्सर घर के बाकी लोग मेहमान आने से खुश होते हैं उनके पास बैठकर उनसे बातें किया करते हैं पर महिलाएं तब भी किचन और उनके मेहमान ना बाजी में लगी रहती है। अगर घर में किसी बच्चे का व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाए या वह बच्चा जिद्दी बन जाए ऐसे में भी उनकी मां की ही गलती निकाली जाती है। जरा मन में सोचिए एक बच्चे के व्यवहार के लिए क्या सिर्फ उसकी मां ही जिम्मेदार है? क्या घर के बाकी लोगों का उस बच्चे के प्रति या घर के माहौल को सही रखने की जिम्मेदारी नहीं है? अगर बीमारी की भी बात करें तब भी एक महीना को काम करना पड़ता है जब तक वह बिस्तर पढ़ना पड़ी हो। ऐसे में उनकी शारीरिक स्वास्थ्य बिल्कुल बिगड़ जाता है।
हमने भारतीय समाज को ध्यान में रखते हुए महिलाओं के लिए तीन कैटेगरी बनाई है ।
बड़े ( अमीर ) घर की महिलाएं कैसे बिताती है अपना स्वतंत्रता दिवस का दिन ?
जिम्मेदारियां से महिलाएं कभी भी पीछा नहीं छुड़ा सकती। फिर चाहे वह अमीर घर की ही क्यों ना हो? उन्हें हमेशा अपने परिवार के स्टेटस का ख्याल रखना पड़ता है। ज्यादातर अमीर घर की महिलाएं घर के अंदर के काम नहीं करती , उसके लिए नौकर चाकर होते है ।पर बहुत महिलाएं रसोई को लेकर बहुत जागरूक रहती है । इसके अलावा उनके ध्यान में हमेशा यह बात रहती है कि ऐसी कोई गलती ना हो जिससे समाज में उनके परिवार के ऊपर उंगली उठे। अक्सर उनके दिन की शुरुआत पूजा से होती है फिर कौन क्या खाएगा इस बात का उन्हें ध्यान रखना पड़ता है। किसकी चाय में कितने चम्मच चीनी होगी और किसको ब्लैक कॉफी से लेकर ग्रीन टी पसंद है यह सब याद रखना इनकी जिम्मेदारी होती है। किसके कमरे में खाने के लिए क्या जाएगा या कौन क्या पहनेगी।
ऐसी महिलाओं को अपने सुंदरता का भी ख्याल रखना पड़ता है। ज्यादा मेहमान आते जाते रहते हैं। अपना स्टेटस और परिवार में एकता बनी रहे यह काम इन्हें दिया जाता है। घर में माहौल सुख और शांति का हो, किसी इंसान को किसी तरीके की कोई तकलीफ ना हो यह सब सोचने की जिम्मेदारी इन महिलाओं की होती है। पार्टी में अपने परिवार को एक हैप्पी फैमिली दिखाना फिर चाहे अंदर कितना ही दर्द छुपा हो। जिम्मेदारियां से तो इन्हें भी छुट्टी नहीं मिलती। एक आदर्श बहू, पति का साथ देने वाली पत्नी और बच्चों का ध्यान रखने वाली मां के रूप में यह पूरा जीवन बिता देती है। फिर चाहे वह 15 अगस्त का दिन क्यों ना हो, इन्हें वह दिन भी परिवार को समेटने में लग जाता है। सब लोगों के लिए उस दिन छुट्टी होती है ऐसे में घर का काम ज्यादा बढ़ जाता है। पूरा दिन उनकी सेवा में ही बीत जाता है।
गरीब घर की महिलाएं क्या करती है 15 अगस्त के दिन
इन महिलाओं के बारे में बात करें तो इन्हें 15 अगस्त के दिन भी अपने काम से छुट्टी नहीं मिलती। चाहे वह किसी घर में काम करने वाली मेड हो, इन्हें 15 अगस्त के दिन अपने काम पर जाना पड़ता है और घर का काम पूरा करने के बाद। अगर एक गरीब घर की महिला किसी अमीर घर में झाड़ू पोछा का काम करती है ऐसे में उन्हें दो घरों का ख्याल रखना पड़ता है एक अपना और एक जहां में काम करती है। उनकी जिम्मेदारियां दुगनी हो जाती है।
इन महिलाओं को जिम्मेदारियां के साथ अपने जीवन में कई सारी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे घरों में ज्यादातर उनके पति नशा करते हैं और उनका शारीरिक शोषण करते हैं । मुश्किलें पीछा कर ही रही होती है की जिम्मेदारियां भी इन्हें घेर लेती है। 15 अगस्त का दिन जहां सब लोग एक दिन के लिए अपने शरीर को आराम देते हैं वही इनका शरीर उस दिन भी टूट ही रहा होता है। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस की बात करना गरीब घरों की महिलाओं के लिए तो बेमानी सी बात है
मध्यम घर की महिलाओं का दर्द जानना भी है जरूर
अक्सर दो वर्ग को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है एक अमीर और एक गरीब। हालांकि, हम भूल जाते हैं मध्यम घर की महिलाओं का भी दर्द होता है। वह दो पालो में फस के रह जाती है। ऐसी महिलाएं कुछ काम पर जाती है तो कुछ घर को संभालने मैं लगी रहती है। इन्हें पैसे और घर दोनों को सही तरीके से चलाना होता है। अपनी खुशियों को मार कर दूसरों की खुशियों का ध्यान रखना पड़ता है। कहां पर कितना पैसा खर्च हो रहा है और कितनी बचत, जितना भी पैसा घर में आ रहा है उसे सब खुश रहे यह जिम्मेदारी उठाते हुए अपना ध्यान रखना भूल जाती है। और अगर बात स्वतंत्रता दिवस की जाए तो मध्यम वर्ग की ज्यादातर महिलाओं को भी स्वतंत्रता दिवस के दिन छुट्टी नहीं मिल पाती । उनका सारा दिन इस तरीके से बीत जाता है जिस तरीके से बाकी दिन बीत जाते हैं ।
सीधी बात यह है कि महिला चाहे किसी भी वर्ग की हो काम से छुट्टी मिलना मुश्किल होता है और अगर काम से छुट्टी मिल भी जाए तो जिम्मेदारियां से छुट्टी नहीं मिलती ।
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