सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला: अब राज्य बना सकेंगे कोटे में कोटा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में अपने 2004 के फैसले को पलटते हुए कहा कि राज्यों को SC-ST आरक्षण के भीतर सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार है। यह फैसला न्यायमूर्ति चिन्नैया द्वारा 2004 में दिए गए उस निर्णय को बदलता है, जिसमें राज्यों को कोटे के भीतर कोटा देने से रोका गया था। इस नए फैसले से SC और ST समुदायों के भीतर अधिक जरूरतमंद समूहों को आरक्षण का लाभ मिलने की संभावना बढ़ गई है।
कोर्ट रूम में क्या हुआ: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सब-क्लासिफिकेशन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि इससे किसी भी समूह को आरक्षण से बाहर नहीं रखा गया है। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने भी इस बात पर जोर दिया कि राज्यों को अपने आंकड़ों के आधार पर सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार है, लेकिन यह प्रक्रिया मनमानी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि SC और ST समुदायों के भीतर भी गहरा भेदभाव मौजूद है, जिसे ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।
पिछली सुनवाइयों में क्या हुआ: इस मामले की सुनवाई फरवरी 2024 में शुरू हुई थी, जिसमें कोर्ट ने विभिन्न पहलुओं पर विचार किया। 8 फरवरी को कोर्ट ने कहा कि सबसे पिछड़े वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए अन्य वर्गों को बाहर नहीं किया जा सकता। 7 फरवरी को कोर्ट ने कहा कि SC और ST समुदायों की आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक स्थिति एक समान नहीं हो सकती। 6 फरवरी को कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या IAS और IPS अफसरों के बच्चों को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
रिव्यू की जरूरत क्यों पड़ी: इस समीक्षा की जरूरत तब पड़ी जब पंजाब सरकार 2006 में एक कानून लेकर आई, जिसमें SC कोटे में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को 50% आरक्षण दिया गया। इसे 2010 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गईं, जिन पर 6 फरवरी 2024 को सुनवाई शुरू हुई।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय राज्यों को SC-ST आरक्षण के भीतर सब-कैटेगरी बनाने की स्वतंत्रता देता है, जिससे समाज के अधिक पिछड़े और जरूरतमंद वर्गों को लाभ पहुंचाया जा सकेगा। यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो आने वाले समय में आरक्षण की परिभाषा को नई दिशा देगा।
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