आईवीएफ दे सकता है मां बनने की खुशी, जानिए कैसे हुआ था चमत्कार
25 जुलाई को हर साल विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जाता है। आजकल खानपान के चलते लोगों के अंदर इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में शादीशुदा जोड़े के लिए बच्चे पैदा करना मुश्किल हो गया है। तनाव की दुनिया और भागदौड़ में इंसान परिवार पर और अपनी बीवी पर ध्यान देने में सक्षम नहीं रहता।
हंसते खेलते शादीशुदा व्यक्ति को कंसीव करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तमाम प्रयास करने के बाद भी बच्चा पैदा ना होना शादी में समस्याएं लाता है। पति और पत्नी के आपस में झगड़ा होने शुरू हो जाते हैं और परिवार से भी कई सारी बातें सुनने को मिलती हैं। ऐसे में आईवीएफ ट्रीटमेंट आज के समय में आम और आसान हो गया है। इसके जरिए पूरी दुनिया में कई लोगों के चेहरे पर मुस्कान आती है और घर में खुशियां। आईवीएफ के जरिए लाखों करोड़ों लोगों का घर बस जाता है और चेहरे से निराशा दूर हो जाती है। 25 जुलाई को हर साल आईवीएफ दिवस मनाया जाता है। इसके चलते लोग आईवीएफ के द्वारा प्रेग्नेंट हुई महिलाओं को बधाई देते हैं और अपनी खुशी जाहिर करते हैं।
आईवीएफ का इतिहास
दरअसल, 25 जुलाई 1978 को दुनिया में पहली बार आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए लुईस जॉय ब्राउन नामक बच्ची का जन्म हुआ था। लुइस की मां की फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक हो चुकी थी जिसके कारण वह कंसीव नहीं कर पा रही थी। कई मुश्किलों का सामना करने के बाद उन्होंने आईवीएफ के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया। धीरे-धीरे लोगों ने आईवीएफ पर विश्वास करना शुरू किया। आईवीएफ एक जरिया है जिससे एक महिला मां बनने की खुशी पा सकती है। संतान सुख पाना कौन नहीं चाहता? पर कई शादीशुदा लोग इस खुशी से वंचित रह जाते हैं। आईवीएफ एक क्रांति की तरह उनके लिए काम करता है।
इस कहानी की शुरुआत उस महिला वैज्ञानिक की है जिसने मां न बन पाने के दर्द को समझा और इसके खात्मे के लिए दवा भी तलाशी। इस महिला वैज्ञानिक का नाम है- मिरियम मेनकिन। करीब 6 साल की मेहनत और लगातार मिलने वाली नाकामियों के बाद फरवरी 1944 में मिरियम को अपने रिसर्च में कामयाबी मिली। उन्होंने अपनी लैब में देखा कि जिस स्पर्म को उन्होंने अंडे के साथ रखा था, वह अब एक हो गया है और कांच की डिश में इंसानी भ्रूण बनना शुरू हो गया है। ऐसा वह हर हफ्ते करती और 1978 में आईवीएफ के जरिए दुनिया का पहला बच्चा पैदा हुआ।
आईवीएफ क्या होता है?
जब एक महिला का शरीर एग को फर्टिलाइजर करने में सक्षम नहीं रहता तब उसे लैब में फर्टिलाइजर किया जाता है। इस प्रोसीजर में महिला के एक को पुरुष के स्पर्म से मिलाया जाता है। और जब महिला का एक फर्टिलाइजर हो जाता है तब उसे महिला के अंदर वापस डाल दिया जाता है। आसान शब्दों में कहे तो आईवीएफ एक तरीका है जिसके जरिए लैब में महिला का एग और पुरुष का स्पर्म एक साथ मिलाया जाता है ताकि फर्टिलिटी की समस्या ना आए।
आईवीएफ की जरूरत कब पड़ती है?
जब फैलोपियन ट्यूब बंद हो यानी फैलोपियन ट्यूब में कोई समस्या हो जिसके कारण गर्भ धारण करना मुश्किल हो जाए। उसे समय आईवीएफ खुशियों का जरिया बन सकता है।
- काम शुक्राणु समस्या होने की वजह से भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर किसी पुरुष में स्पर्म काउंट कम है तो महिला गर्भधारण नहीं कर पाएगी।
- कई बार आनुवंशिक रोग भी गर्भधारण करने में समस्या पैदा करता है, जिसके वजह से आपको आईवीएफ का सहारा लेना पड़ जाता है।
आईवीएफ के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
यह प्रोसीजर जितना सुनने में आसान लग रहा है उतना ही मुश्किल साबित होता है। इसके बाद एक महिला को अपने शरीर का काफी ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे में कुछ सावधानियां बरतना आवश्यक हो जाता है। जैसे की:
- आराम करना और मेडिकल प्रोसीजर को फॉलो करना
- आईवीएफ के समय संभोग न करना
- खानपान का ध्यान रखना और ज्यादा से ज्यादा पानी पीना
- शारीरिक काम ना करना और भारी वजन न उठाना
- गरम खाना खाने से बचाना
- ज्यादा स्ट्रेस ना लेना और खुश रहना
- वजन को कंट्रोल में रखना
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