गुरु पूर्णिमा: ज्ञान और श्रद्धा का पर्व क्यों है इतना खास, सनातन धर्म में इस पर्व का क्या महत्व है? जानें
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस वर्ष यह पर्व 21 जुलाई 2024 को मनाया जाएगा। यह दिन विशेष रूप से गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए समर्पित है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व: गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शिष्यों द्वारा अपने गुरुओं को सम्मानित किया जाता है और उनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षा और मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर के तुल्य माना जाता है, क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।
गुरु पूर्णिमा की परंपराएं: गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं और उनकी दीक्षा का स्मरण करते हैं। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना, प्रवचन और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। शिष्य अपने गुरुओं को नारियल, वस्त्र, फल और मिठाई भेंट करते हैं, जिसे गुरुदक्षिणा कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व: इस पर्व का उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। महाभारत में वेद व्यास को अद्वितीय ज्ञान और सृजन का प्रतीक माना गया है। उन्होंने चार वेदों का संकलन किया और पुराणों की रचना की, जिससे उन्हें ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा का आधुनिक संदर्भ: आज के समय में भी गुरु पूर्णिमा का महत्व कम नहीं हुआ है। शिक्षण संस्थानों और धार्मिक आश्रमों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने शिक्षकों, जीवन मार्गदर्शकों और प्रेरणास्त्रोतों को सम्मानित करते हैं।
गुरु पूर्णिमा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह हमारे जीवन में गुरुओं के महत्व को भी रेखांकित करता है। यह दिन हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन के प्रत्येक शिक्षक को सम्मान दें और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का सही उपयोग करें।
इस पावन अवसर पर सभी पाठकों को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। अपने गुरु के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का यह दिन विशेष होता है, इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनाएं।
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