हैट्रिक की लाइट के लिए घर के कई बल्ब बदलेगी भाजपा
बल्ब बदलने के लिए मुख्यमंत्री को चाहिए होगा फ्री हैंड
विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट पड़ने पर संशय
हरियाणा भाजपा में कोई ऐसा चेहरा नहीं जिसके नाम पर एक तरफ वोट पड़ जाए
भले ही केंद्र में भारतीय जनता पार्टी सहयोगियों के दम पर सरकार बनाने में सफल रही है लेकिन इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कई राज्यों में उसे कड़ी चुनौती मिलती नजर आ रही है । 2 दिन पहले आए उपचुनाव के नतीजे ने भी भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है । और इसी साल कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें हरियाणा और महाराष्ट्र में फिर से सत्ता में लौटना भाजपा के लिए आसमान से तारे लेकर आने से कम नहीं है। हरियाणा में पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदल कर जनता को एक संदेश देने की कोशिश की । पूर्व मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने के बाद भी लोकसभा चुनाव में भाजपा की गाड़ी दिल्ली पूरी रफ्तार से नहीं पहुंच पाई । गाड़ी की स्पीड को और ज्यादा तेज चलने के लिए अब तो प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया गया है । नए नवेले सीएम साहब जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। परंतु कई बड़ी चुनौतियां सुरसा के मुंह की तरह भाजपा के जी का जंजाल बनी हुई है। एक तो यह कि हरियाणा में लोग बदलाव के मूड में नजर आ रहे हैं और इसका सीधा लाभ कांग्रेस पार्टी को मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बहुत मेहनत कर रहे हैं। उनकी राजनीतिक सोच और विजन भाजपा को चारों खाने चित करने की स्थिति में दिख रहा है। अभी हरियाणा में भाजपा कई विधानसभा सीटों पर दयनीय स्थिति में दिखाई दे रही है। यह स्थिति तब है जब उसे लोकसभा के चुनाव में 46 सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा था। यदि गौर से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी को 2019 में 40 सीटों पर जीत नसीब हुई थी । राज्य में 13 14 सीट ऐसी है जहां पार्टी के उम्मीदवार थोड़े से मतों से जीत कर आए थे ।अब इन सीटों पर रणनीति ही नहीं उम्मीदवार भी बदलने पड़ सकते हैं और भारतीय जनता पार्टी में अगर ऐसा नहीं किया तो उसका हरियाणा में हैट्रिक का सपना चूर-चूर हो जाएगा। कई विधानसभा क्षेत्र जैसे होडल, बड़खल, पृथला, राई, गन्नौर, समालखा, असंध, नीलोखेड़ी, पेहवा, थानेसर, यमुनानगर, कैथल, रतिया, पुंडरी ,बरवाला, फतेहाबाद ,कालका, बहादुरगढ़ ,गोहाना आदि विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी ने रणनीति और उम्मीदवार नहीं बदले तो उसे करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। पार्टी को सिटिंग एमएलए की टिकट काटने की हिम्मत जुटानी पड़ेगी । जहां जिस समुदाय के मतदाता ज्यादा है वहां इस समुदाय के लोगों को टिकट देने की प्राथमिकता पर काम करना होगा।
केंद्रीय मंत्री भाजपा के वरिष्ठ नेता राव इंद्रजीत सिंह की बॉडी लैंग्वेज और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ सकती है । इस मामले में पार्टी के नेताओं को यह मानकर चलना चाहिए कि अहीरवाल, भिवानी यहां तक कि हिसार क्षेत्र की लगभग एक दर्जन सीटों पर राव इंद्रजीत सिंह अपनी लड़ाई सांसद धर्मवीर के साथ मिलकर लड़ने के मूड में ही तैयारी में नजर आ रहे हैं है। इस बार यह दोनों मतलब राव इंद्रजीत सिंह और धर्मवीर अपनी मर्जी का काम करना चाहते हैं और हरियाणा विधानसभा में उस निर्णायक स्थिति में आना चाहते हैं जिसमें 2019 के चुनाव के बाद जेजेपी थी। आप यह मानकर चलें कि राव इंद्रजीत सिंह को संतुष्ट करने के बाद भी भाजपा के फिर से सत्ता में लौटने के आसार बहुत ज्यादा नहीं है।
उसे एक नुकसान जेजेपी के कमजोर होने का भी हो रहा है। आप समझ सकते हैं कि पिछले चुनाव में कई हल्कों में बीजेपी के उम्मीदवार इसलिए जीत गए थे कि जेजेपी के उम्मीदवार अच्छी खासी वोट बटोर ले गए। इससे प्रतिद्वंदी कांग्रेस को नुकसान हुआ अब स्थिति बदल गई है ।अब जेजेपी बहुत कमजोर स्थिति में है। इस बात को सब मानते हैं कि 2019 में लोकसभा के चुनाव में 10 की 10 सीट जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने गफलत का परिचय दिया और गलत टिकट बांट बैठे।
इनैलो और बसपा का हाल में हुआ गठबंधन भाजपा के लिए सुखद हो सकता है। आम आदमी पार्टी का सभी 90 विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ना भी निर्णायक साबित होने वाला है। इस समय यह स्थिति है कि पार्टी के नेताओं को टिकटों के बंटवारे में हर पहलू पर विचार करके फैसले लेने होंगे। ऐसा हो कि लोग यह कहें कि भाजपा ने टिकट ढंग से बांट दिए हैं । यहां एक बात शीशे की तरह साफ है कि भारतीय जनता पार्टी लोकसभा के चुनाव में भी गलत टिकट नहीं बांटती तो उसकी ऐसी दुर्गति नहीं होती जैसी हुई है। कांग्रेस दो से ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में नजर नहीं आ रही थी। एक बात और साफ नजर आ रही है कि भाजपा के कई बड़े नेता ऐसे हैं जो विधानसभा का चुनाव जीतने में भी सफल होते नजर नहीं आ रहे। इन में कैप्टन अभिमन्यु ओम प्रकाश धनखड़ रामविलास शर्मा सीमा त्रिखा कंवर पाल गुर्जर आदि के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। ऐसी स्थिति बन रही है कि आने वाले चुनाव में आदमपुर से कुलदीप बिश्नोई और तोशाम से किरण चौधरी ( अब कांग्रेस मे ) रनिया से चौधरी रणजीत सिंह को भी जीत के लिए पसीने आ सकते है । 2014 हो या फिर 2019, सिरसा जिले में भारतीय जनता पार्टी एक बार भी कमल खिलाने में सफल नहीं हो पाई है और 2024 का चुनाव भी उसके लिए एकबार फिर चुनौती बनने जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में हारे एक दो उम्मीदवार को विधानसभा का चुनाव भी लड़ा सकती है। यह भाजपा के लिए सुखद हो सकता है।
विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर जनता के वोट देने पर संशय
विधानसभा के चुनाव में हरियाणा में भाजपा को एक और नुकसान यह हो सकता है कि लोकसभा में जैसे नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट पड़े उस तरह से अब विधानसभा चुनाव में नहीं पड़ेंगे । और वर्तमान में हरियाणा भाजपा में ऐसा कुछ चेहरा नजर नहीं आ रहा जिसके नाम पर एक तरफ वोट बीजेपी डलवा सके।
इसके बावजूद टिकटो को लेकर भाजपा में खूब मारा मारी देखने को मिल रही है ।इसका मतलब यह है कि पार्टी के नेता तालमेल बनाकर अपने स्वार्थ को छोड़कर कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतकर टिकटो का बंटवारा समझदारी से करने में सफल हो गए तो हरियाणा का चुनाव बहुत रोचक हो जाएगा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार को ऐसा कुछ बड़ा जरूर करना पड़ेगा जो हर नागरिक को प्रभावित करें। भारतीय जनता पार्टी को टिकट बंटवारे में महिलाओं को और अधिक प्रतिनिधित्व देने का लाभ हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी ने शरीफ मृदु भाषी ऊर्जावान और पहली बार मुख्यमंत्री बने नायब सैनी को फ्री हैंड देना पड़ेगा। ताकि नायब सैनी उन बल्बों को बदल सके जिनमे रोशनी कम हो चुकी है या फिर फ्यूज हो चुके हैं ।
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