तीन नए कानून को लेकर सदन में होनी चाहिए बहस, विपक्ष जता रहे हैं विरोध
देशभर में 1 जुलाई से तीन नए अपराधिक कानून लागू हो चुके हैं। ऐसा कहां जा रहे हैं कि इसके बाद आईपीसी और सीआरसी की छुट्टी हो जाएगी। इन कानून के तहत अब कोई भी अपराध किसी भी थाना में दर्ज करवाया जा सकता है। दर्ज की गई FIR की कार्रवाई ऑनलाइन नंबर के माध्यम से देखी जा सकेगी। इन 3 कानून का सीधा असर आम आदमी की जिंदगी पर पड़ेगा।
आपको बता दे की 150 साल पुरानी दण्ड आधारित न्याय प्रणाली के लिए पुराने आपराधिक कानूनों की जगह अब तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई से लागू हो चुके हैं। यह तीन नए कानून है- भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 – 1 जुलाई 2024। पुराने कानून की जगह यह तीन नए कानून मानवाधिकार, एक व्यक्ति की स्वतंत्रता और सभी के साथ समान व्यवहार के सिद्धांत के आधार पर बनाए गए हैं। पर कई लोगों का मानना है कि कानूनों में में कई सारी कमियां भी है। विपक्ष लगातार इन कानून का विरोध करते आ रहे हैं।
आखिर 3 नए कानून में क्या है कमियां ?
- सबसे पहले तो जिस तरीके से इन तीनों कानून को मान्यता दी और सदन में पास करवाया गया वह तरीका गलत बताया जा रहा है। इन कानून को दोनों सदनों से पास करते समय सिर्फ़ पाँच घंटे की बहस हुई थी और ये वो समय था जब संसद से विपक्ष के 140 से अधिक सांसद निलंबित कर दिए गए थे। जिन कानून का सीधा आंसर आम आदमी की जिंदगी पर पढ़ता हो उसको लागू करने से सदन में विपक्ष की बात सुना भी जरूरी हो जाता है। जो कानून न्याय व्यवस्था को बदल देगा उस पर सदन में सही तरीके से बहस होनी चाहिए थी।
- पहले केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी। पर अब 60 से 90 दिन तक रिमांड में रख सकते है। केस का ट्रायल शुरू होने से पहले इतनी लंबी पुलिस रिमांड को लेकर आपत्ति जताई जा रही है। लोगों को कहना है कि कोर्ट का फैसला आने से पहले ही किसी व्यक्ति को ऐसे अपराधी मान लिया जाएगा। इतनी बड़ी डिमांड से व्यक्ति की फ्रीडम और हक पर खतरा हो सकता है।
- अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फ़ैसला देना होगा, शिकायत के तीन दिन के भीतर एफ़आईआर दर्ज करवानी होगी। FIR और सुनवाई में समय सीमा तय करने से गलत फैसला सुनाया जा सकता है।
- शादी का झूठा वादा करके सेक्स को विशेष रूप से अपराध के रूप में पेश किया गया है। इसके लिए 10 साल तक की सज़ा होगी। कई बार दो लोगों के बीच सेक्स मर्जी से होता है। आज कल के समय में ज्यादा तर लोग सेक्स शादी से पहले कर लेते है और कई सारी बातों के चलते शादी बाद में जाकर टूट जाती है। ऐसे कितने मामलों में महिलाओं की भी गलती देखी गई है। लोगों को कहना है कि इस पर सख्त कानून बनाना पुरषों के साथ इंसाफ नहीं कहलाएगा।
- 1 जुलाई से पहले जो FIR दर्ज हुई है उस पर पुराने कानून को लेकर सुनवाई की जाएगी और फैसला सुनाया जाएगा। लेकिन 1 जुलाई और 1 जुलाई के बाद से FIR दर्ज करवाने पर नए कानून लागू होंगे ऐसे में कोर्ट के अंदर फसलों में दिक्कत आ सकती है या यह कहना सही होगा कि न्यायिक समस्या खड़ी हो सकती है।
- देश की जानी-मानी अधिवक्ता और पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने पत्रकार करन थापर को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर तीन नए आपराधिक क़ानून एक जुलाई से लागू होगा हो जाते हैं तो हमारे सामने बड़ी“न्यायिक समस्या” खड़ी हो जाएगी। सबसे बड़ी चिंता की बात कभी होगी कि अभियुक्त की “ज़िंदगी और आज़ादी ख़तरे में पड़ सकती है।” इन तीन नए कानून से अपराधी को अपनी बात रखने की इजाजत को कम कर दिया गया है। जैसे डिमांड की दिनों को 60 दिन तक कर देना। लोगों की चिंता है कि इस से फाल्स केस बढ़ सकते हैं।
- वकीलों और जजों को अब नए और पुराने दोनों कानूनों की जानकारी रखनी होगी। पुराने आपराधिक मुकदमे पुरानी आईपीसी के तहत ही चलेंगे। नए कानून में धाराएं बदलने से पुलिस, वकील और जज के सामने परेशानियां खड़ी हो सकती है। जानकारों का कहना है कि नए कानूनों को लेकर वकीलों में भी जानकारी की कमी है और उन्हें इन्हें पढ़ने और समझने में समय लगेगा।
कांग्रेस पार्टी में जताया विरोध
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि ये कानून इस देश में पुलिस राज की स्थापना करेंगे। ये आज से दो सामानांतर फौजदारी की प्रणालियों को जन्म देंगे। 30 जून 2024 की रात 12 बजे तक जो फौजदारी के मुकदमे लिखे गए हैं और अदालतों के संज्ञान में हैं, उन पर पुराने कानूनों के तहत कार्रवाई होगी। जो मामले 30 जून के बाद दर्ज किए जाएंगे उसमें नए कानून के तहत कार्रवाई होगी। भारत की जो न्यायिक प्रणाली है उसमें 3.4 करोड़ मामले लंबित हैं जिसमें से अधिकतर फौजदारी के मुकदमे हैं इसलिए इससे एक बहुत बड़ा संकट आने वाला है… इन कानूनों को संसद के समक्ष दोबारा रख कर एक संयुक्त संसदीय समिति के सामने भेजने के बाद फिर क्रियान्वयन के लिए भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने कहा, “विपक्ष की मांग है कि उसमें कई खंड ऐसे हैं जिन पर पुनर्विचार होना चाहिए लेकिन सरकार मान नहीं रही है और उसे लागू कर रही है।”
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