खरी-अखरी : बदले – बदले से सरकार नजर आते हैं !
सोमवार लोकसभा सदन का नजारा 10 सालों में पहली बार बदला हुआ नजर आ रहा था खासतौर पर उस समय जब बतौर प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी अपनी बात रख रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित स्पीकर ओम बिरला की बाॅडी लेंग्वेज बता रही थी कि वे मानसिक रूप से तनावग्रस्त हैं ! राहुल गांधी के बोलने का लहजा ठीक उसी तरह अक्रामक था जिस तरह पीएम नरेन्द्र मोदी का हुआ करता है। बोलते समय जहां राहुल गांधी की बाॅडी लेंग्वेज आत्मविश्वास से भरी हुई दिख रही थी वहीं पीएम और एचएम की बाॅडी लेंग्वेज आत्मरक्षात्मक लग रही थी। अभी तक तो किसी भी विपक्षी सदस्य के बोलने पर पीएम, एचएम, डीएम को बीच में टोका-टाकी करते हुए नहीं देखा गया है। शायद पहली बार प्रतिपक्ष के नेता के बोलने के बीच पीएम, एचएम, डीएम, एलएम को टोका-टाकी करते हुए देखा गया है। हद तो तब हो गई जब सत्तापक्ष के लिए एचएम अमित शाह को स्पीकर से संरक्षण मांगते हुए देखा गया जबकि पिछले दस सालों में तो विपक्षी नेता ही स्पीकर से संरक्षण मांगते हुए देखे गए हैं और स्पीकर संरक्षण देना तो दूर रहम की टेढ़ी नजर भी इनायत करते हुए भी दिखाई नहीं दिए। एक साथ ढेढ़ सैकड़ा विपक्षी सांसदों का लोकसभा से निष्कासन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। स्पीकर ओम बिरला द्वारा बनाया गया यह कीर्तिमान शायद ही भविष्य में कोई दूसरा स्पीकर दुबारा बना पाये। स्पीकर ओम बिरला जो विपक्षी सदस्यों को तेल में देखते नजर आते थे आज उनकी नजरें भी खौफ़ जदा दिखीं ! हिन्दुत्व को लेकर राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर हुए हंगामे के बीच पीएम ने आपत्ति जताई जिस पर पूरे आत्मविश्वास के साथ राहुल गांधी को यह कहते हुए सुना गया कि नरेन्द्र मोदी बीजेपी और आरएसएस कोई भी समस्त हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं इस तरफ (विपक्ष की सीटों पर) जो बैठे हैं वे भी हिन्दू ही हैं। राहुल गांधी ने नीट, मणिपुर, अग्निवीर, किसान आंदोलन, बेरोजगारी, मंहगाई, भय-भूख-भृष्टाचार सहित अनेक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात बिना झिझके हुए रखी। राहुल गांधी के बोलने से यह कतई नहीं लगा कि वह नरेन्द्र मोदी का पप्पू बोल रहा है। वह बकायदा एक मंजे हुए नेता की तरह बोल रहा था। हां यह जरूर है कि राहुल गांधी में परिपक्व नेता का अभाव दिखा। कई बार शब्दों का हलकापन भी दिखाई दिया। मगर चूंकि यह राहुल गांधी का बतौर लीडर आफ अपोजीशन पहला भाषण है तो इस तरह की कमी का होना स्वाभाविक भी है। जहां तक संसद की गरिमा की बात है तो उसे लीडर आफ पोजिशन (सदन के नेता) ही पिछले दस वर्षों से धूमिल करते दिखाई दिए हैं। पीएम हों या एचएम या फिर स्पीकर ही क्यों ना हो जब ये संसद की गरिमा बनाये रखने की बात कर रहे थे तो इनकी बात देशवासियों के गले नहीं उतर रही थी। कह सकते हैं कि जिस लहजे में पिछले दस सालों में पीएम नरेन्द्र मोदी को सुनते आए हैं कुछ ऐसे ही लहजे में लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी को बोलते हुए सुना गया। राहुल गांधी के भाषण में खुद के साथ पीएम मोदी और उनकी सरकार द्वारा पिछले दस सालों में किये गये अत्याचारों के पीड़ा की प्रतिध्वनि भी सुनाई देती रही।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता, स्वतंत्र पत्रकार
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