खरी खरी : रिंग मास्टर का चाबुक तो ऐसे ही चलेगा !
जब चुना ही है हाथों में खंजर का हुनर देख कर, तो फिर क्यों हैरान होते हो लाशों का शहर देख कर
शायर की ऐ पंक्तियां दूसरी बार लोकसभा स्पीकर चुने गए ओम बिरला के कार्य – व्यवहार में सटीक बैठती दिखाई दे रही है। 17 वीं लोकसभा में बतौर स्पीकर ओम बिरला का कार्यकाल विवादास्पद रहा है। स्पीकर की आसंदी पर बैठकर की जाने वाली लोकसभा की कार्रवाईयां पक्षपात पूर्ण रही हैं। विपक्ष के सवाल और सत्ता के जबाव की तराजू के पलड़े को बराबर बनाये रखने की जिम्मेदारी स्पीकर की ही होती है। मगर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। देश ने देखा है कि पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले लोगों से संबंधित, मणिपुर की घटना, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, इलेक्टोरल बांड्स आदि जैसे तमाम सवालों को संसद में उठाने की अनुमति स्पीकर ओम बिरला द्वारा नहीं दी गई । यहां तक कि जो काम स्वतंत्र भारत के संसदीय इतिहास में कभी नहीं हुआ उसे भी स्पीकर ओम बिरला ने करके इतिहास रच दिया – वह है एक साथ ढेढ सैकड़ा विपक्षी सांसदों का संसद से निलंबन। कहा जा सकता है कि उनके द्वारा संविधान प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग सत्ता की ढाल बनकर किया गया। जबकि स्पीकर के संवैधानिक पद पर बैठने वाला व्यक्ति किसी दल विशेष का सदस्य न रहकर पूरे सदन और संविधान का पहरेदार हो जाता है। संसदीय कार्रवाई के दौरान उसके दायित्व और शक्तियां प्रधानमंत्री से भी ज्यादा होती हैं।
जिस तरह से ओम बिरला ने 17 वीं लोकसभा में स्पीकर की आसंदी पर बैठकर मोदी सरकार को जायज – नाजायज संरक्षण दिया उसी के मद्देनजर पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा विपक्ष के साथ ही अपने सहयोगी दलों की आपत्ति के बाद भी ओम बिरला को एक बार फिर से स्पीकर की आसंदी पर बैठाया गया है। आने वाले 5 साल में, यदि मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाये तो, वह लोकसभा सांसदों के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, खासतौर पर विपक्षी सांसदों के साथ, इसकी झलक उन्होंने कांग्रेस के सांसद दीपेन्द्र हुड्डा, जो ओम बिरला से ज्यादा बार सांसद चुने जा चुके हैं, के साथ निहायत निम्न स्तरीय लहजे में टिप्पणी करके दे दी है। इसका वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इस वीडियो में कांग्रेस सांसद शशि थरूर शपथ लेने के बाद ‘जय संविधान’ कहते हुए दिख रहे हैं जिस इस पर स्पीकर ओम बिरला कहते हुए दिख रहे हैं कि जब संविधान की शपथ ले ली तो फिर जय संविधान कहने की जरूरत क्या है। इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद स्पीकर से कहते हैं कि इस पर माननीय को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जिस पर स्पीकर ओम बिरला कहते हुए दिख रहे हैं कि किस पे आपत्ति किस पे आपत्ति नहीं सलाह मत दिया करो चलो बैठो। वीडियो में स्पष्ट दिख रहा है कि स्पीकर ओम बिरला की भावभंगिमा और लहजा ना तो उनके पद की गरिमा के मुताबिक है ना दीपेन्द्र हुड्डा के।
स्पीकर ओम बिरला के कहे पर सोशल मीडिया में आलोचनात्मक टिप्पणियों की बौछारें पडऩे लगी है। कहा जा रहा है कि संसद के भीतर जब जय हिन्दू राष्ट्र, जय भीभ, जय मीम, जय तेलंगाना यहां तक कि जय फिलिस्तीन बोला जाता है तब तो उन्होेंने कोई एतराज जाहिर नहीं किया मगर एक कांग्रेस सांसद के जय संविधान कहे जाने पर आपत्ति जता दी। कहीं यह 370 – 400 सीटें ना मिलने की आंतरिक पीड़ा का छलक जाना तो नहीं है ! जो संविधान बदलने के लिए मांगी जा रही थी ! और क्या यह संविधान विरोध का नया रूप तो नहीं है। यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि निर्वाचित सदस्य को जिस संविधान की शपथ दिलाई जाती है, जिस संविधान से शक्तियां पाकर खुद स्पीकर संसद की कार्यवाही संचालित करते हैं, जिस संविधान से देशवासियों को जान-माल की सुरक्षा मिलती है उसी संविधान का जय घोष स्पीकर ओम बिरला को नागवार गुजरा ! स्पीकर ओम बिरला को एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें राष्ट्रगान के दौरान महामहिम राष्ट्रपति और पूरी संसद सावधान की मुद्रा में खड़े हुए हैं और बिरला चहलकदमी करते हुए आकर खड़े होते दिख रहे हैं। जबकि राष्ट्रगान के दौरान जो जिस जगह पर है वह वहीं खड़ा हो जाता है। यह वायरल वीडियो बताता है कि ओम बिरला ने ना तो अपने पद की मर्यादा का पालन किया ना ही राष्ट्रगान का सम्मान। इस हरकत को राष्ट्रगान के घोर अपमान की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। (खरी – अखरी सोशल मीडिया में वायरल हो रहे किसी भी वीडियो की सत्यता का समर्थन नहीं कर रहा है)
*देश का कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितने बड़े पद पर विराजमान हो वह संविधान और विधान से बड़ा नहीं है। मगर 18 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान देश और संविधान दोनों को शर्मसार होते हुए देखा गया है। चंद सांसदों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर ने संविधान को ताक पर रखकर अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद को शीर्ष पर और देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को हासिये पर रखा। राजनीतिक पार्टियों की वोटबैंक, सत्ता लोलुपता को पूरी तरह से समझने में नाकाम रही जनता ने सामाजिक अलगाव और देश के खिलाफ साजिश रचने वाले कुछ लोगों को चुनकर संसद में भेज दिया है। जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन के नारे कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं। सबसे शर्मनाक तो यह है कि अभी तक स्पीकर ओम बिरला ने जय फिलिस्तीन का नारा बुलंद करने वाले आल इंडिया मजलिस – ए – इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमएआईएम) पार्टी से हैदराबादी सांसद असादुदीन ओवैसी पर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई जबकि 17 वीं लोकसभा में स्पीकर रहते हुए बिरला ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने में तनिक सी भी देरी नहीं की गई थी। तो क्या स्पीकर अपनी नई पारी में एक नये तरह की राजनीतिक परम्परा की शुरुआत करने जा रहे हैं। जिसमें सत्ता पार्टी के देशद्रोह जैसे सैकड़ों खून माफ होंगे और विपक्ष के संवैधानिक अधिकारों को निरंकुशता से पैरों तले कुचला जायेगा। सही कहा है कि “वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती, हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम”।
*कितना अच्छा होता यदि……………… *
महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू ने संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए अपने अभिभाषण में केवल इमर्जेंसी का जिक्र कर राष्ट्रपति की गरिमा को कमतर कर दिया है। अच्छा होता कि महामहिम इमर्जेंसी के साथ ही अपनी पिछली और वर्तमान मोदी सरकार की नाकामियों का भी जिक्र करती। जिसमें मणिपुर में हुई नस्लीय हिंसा के साथ ही महिलाओं के साथ हुये यौनाचार, दुनिया के खेल जगत में भारत का नाम रोशन करने वाली महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न, देश के हर राज्य में हर दिन बच्चियों से लेकर उम्रदराज महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी मंहगाई बेरोजगारी, इलेक्टोरल बांड्स घोटाला, किसान आंदोलन के दौरान हुई किसानों की मौत, अग्निवीर योजना की नाराजगी आदि को शामिल कर झूठी ही सही संवेदना व्यक्त कर देती। अपनी सरकार के एक पखवाड़े में घटित घटनाओं को शामिल कर देशवासियों को बताती कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमला, भीषण रेल दुर्घटना, नीट पेपर लीक, नीट पीजी निरस्त, संयुक्त सीएसआईआर – यूजीसी नेट निरस्त, यूजीसी नेट का पेपर लीक, रूपये में रिकार्ड गिरावट, दूध, दाल, सब्जी, गैस, टोल आदि के दामों में भारी-भरकम बढ़ोतरी के साथ ही अयोध्या में ताजा – ताजा बने आधे-अधूरे राम मंदिर निर्माण में किये गये भृष्टाचार के नजारे (जिसका चुनावी फायदा लेने के लिए आधे-अधूरे, अमहूर्त में शंकराचार्यों द्वारा धर्माचरण के विपरीत कहे जाने के बाद भी आपकी सरकार के पीएम नरेन्द्र मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा कर उद्घाटन करवा दिया था) सामने आने से हुई है। अगर ऐसा होता तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आज राष्ट्रपति की कुर्सी खुद पर गर्व करती। बुजुर्गों द्वारा कहा जाता है कि कोई राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है तो किसी के बैठने से राष्ट्रपति की कुर्सी खुद को गौरवान्वित महसूस करती है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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