एक बार फिर हादसे के बाद जागा कुंभकरनी नींद से तंत्र और धड़ाधड़ हुए आदेश जारी
राजकोट हादसे के बाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी : सो रहे थे क्या नगर निगम के अधिकारी
गुजरात का राजकोट हादसा हो या फिर दिल्ली का हादसा या फिर कुछ दिन पहले हुआ हरियाणा में कनीना में स्कूली बस हादसा; एक बात तो इन सभी के अंदर सामान्य दिखाई पड़ती है कि हादसा होने के बाद ही तंत्र जगाता है और यह तंत्र कुछ दिन तक तो जागता रहेगा और उसके बाद में फिर उसी कुंभकरण की नींद में सो जाता है। ऊपर लिखे गए यह हादसे तो सिर्फ चंद उदाहरण है। हर बार ऐसे हादसों के बाद जांच कमेटी बैठाई जाती है, वह जांच कमेटी साल दो साल जांच करती रहती है और अपनी रिपोर्ट सरकार को दे देती है। उसके बाद में सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है। कुछ ऐसा ही हाल 3 दिन पहले हुए गुजरात के राजकोट हादसे में होता हुआ भी नजर आ रहा है। जहां पर एक अवैध तौर पर संचालित किया जा रहे गेमिंग जोन जिसमें 30 लोगों ( 12 – 13 मासूम बच्चों ) की जान चली गई। और तो और मजे की बात यह यह गेमिंग जोन पिछले 4 साल से अवैध तौर पर संचालित किया जा रहा था। इसमें जानकारी तो यह भी मिली है कि राजकोट प्रशासन के बड़े आल्हा अधिकारी यहां पर अपना मैदान बहलाने के लिए आया जाया करते थे। राजकोट टीआरपी गेम जोन हादसे की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने राजकोट महानगरपालिका प्रशासन को जमकर फटकर लगाई। कोर्ट ने कहा- बच्चों समेत 28 लोगों की मौत के बाद आपको अब पता चल रहा है कि शहर में दो गेमिंग जोन बिना परमिशन के चल रहे हैं। क्या आप अंधे हो गए हैं, या फिर सो रहे हैं? राजकोट में गेमिंग सेंटर अनधिकृत परिसर में बनाया गया था और फायर सेफ्टी की नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी नहीं था और यह सब कुछ पिछले चार साल से चल रहा था। अब हमें नगर प्रशासन और गुजरात सरकार पर बिल्कुल भरोसा नहीं रहा। कोर्ट ने कहा- यह त्रासदी आंखें खोलने वाली है, सबसे दुखद बात यह है कि इसमें मासूम बच्चों की भी मौत हुई है।
गुजरात हाई कोर्ट ने खुद की सुनवाई
गुजरात हाईकोर्ट ने 26 मई 2024 को राजकोट टीआरपी गेम जोन हादसे पर एक्शन लेकर सुनवाई शुरू की थी। हाईकोर्ट ने रविवार को भी सुनवाई की। विशेष जज बीरेन वैष्णव और देवेन देसाई की बेंच बैठी थी। हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ब्रिजेश त्रिवेदी और अधिवक्ता अमित पांचाल ने दलीलें दीं। हाईकोर्ट ने अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट में गेम जोन के नियमों पर दलीलें पेश करने का आदेश दिया था। राजकोट पुलिस कमिश्नर ने कोर्ट को बताया कि टीआरपी गेम जोन को कोई इजाजत नहीं दी गई थी। कोर्ट ने पुलिस और नगर निगम से 3 जून तक हलफनामा देने को कहा है। 6 जून से इस केस की सुनवाई शुरू होगी।
छह अधिकारियों को किया गया सस्पेंड
उधर गुजरात सरकार ने सोमवार को घटना को लेकर लापरवाही बरतने के आरोप में 6 अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है। इनमें राजकोट महानगरपालिका कॉर्पोरेशन के असिस्टेंट प्लानर, असिस्टेंट इंजीनियर, रोड्स एंड बिल्डिंग डिपार्टमेंट के दो डिप्टी इंजीनियर और दो थानों के पुलिस इंस्पेक्टर शामिल हैं।
दिल्ली हादसे पर राजनीतिक बयान बाजी शुरू
गुजरात हादसे की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी की दिल्ली में बच्चों के अस्पताल में एक हादसा हो गया। यहां पर भी कमोबेश स्थिति गुजरात जैसी ही थी। जिस अस्पताल में यह हादसा हुआ वहां पर 10 बच्चों को रखे जाने की अनुमति थी परंतु हादसे के वक्त वहां पर 12 बच्चे थे। जिनमें से 6 बच्चों की जान चली गई। पहली नजर में लापरवाही अगर गुजरात हादसे में है तो लापरवाही दिल्ली हादसे में भी नजर आ रही है।
दिल्ली हादसे पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू
विवेक विहार घटना पर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा मार्च 2021 में इस अस्पताल की मंजूरी नहीं दी जा रही थी। लेकिन उस समय के चिकित्सा अधीक्षक दास ने जान बूझकर इसकी फाइल को आगे बढ़ाया। उस अस्पताल में 5 बेड की क्षमता थी अनुमति 10 बेड की दी गई, बच्चे निकले 12 इससे ज्यादा भी हो सकते हैं… स्वास्थय मंत्री, ओएसडी और अरविंद केजरीवाल इसके पीछे हैं। ये बच्चों की हत्या है जिनके जिम्मेदार ये लोग हैं।
राजनीति के बजाय अगर सिस्टम सुधारने पर ध्यान दें नेता
हादसा चाहे गुजरात में हो दिल्ली में हो हरियाणा में हो या किसी दूसरे राज्य में हो हादसा होने के बाद तुरंत राजनीति शुरू हो जाती है। राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि भले आज जिस राज्य में वह अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हो पर दूसरे राज्य में सरकार उन्हीं की है। अगर आप यहां पर उंगली उठा रहे हैं तो दूसरे राज्य में उंगली आप पर भी उठ रही है। खबरी प्रशाद अखबार ना तो इस तरह की राजनीति पर भरोसा रखता है ना ही इस तरह की बयानबाजी को बढ़ावा देता है।
हादसे के बाद खबरी प्रशाद अखबार के सिस्टम से 10 सवाल
1- राजकोट में बिना NOC पेट्रोल-डीजल का बड़ा स्टॉक कैसे रखा गया वह भी बच्चों के गेम जोन में ?
2- गेम जोन में आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने की तैयारी क्यों नहीं थी ? यह देखना जिसका काम था उसे पकड़ा क्यों नही ?
3- सुरक्षा मानको के पालन में कोताही पर कड़ी कार्रवाई हादसे के पहले की जाती तो यह घटना ही नहीं होती?
4- दिल्ली बेबी केयर अस्पताल में भी कोई सेफ्टी मेज़र नही लिया, ना NOC थी। क्यों ?
5- हादसे के वक्त अस्पताल का मालिक या कोई ज़िम्मेदार स्टाफ क्यों मौजूद नहीं था ?
6- अस्पताल की सुरक्षा में लगे गार्ड कहां थे, या रखे ही नही गए थे ?
7- इतनी संकरी या छोटी गलियों में जहां अग्निशमन गाडी नहीं जा सकतीं वहाँ इसे अनुमती कैसे दी ?
8- आग लगते ही बेबी केयर का मालिक फरार कैसे हो गया ? अब उस पर क्या कार्रवाई होगी ? इसे भी कोई निबंध लिखने देंगे ?
9- सुरक्षा मानकों के खिलाफ जाकर परमीशन देने वाले अफसरों को अभी तक जेल में क्यों नहीं डाला ?
10- अभी तक कोई नेता कहीं पर भी क्यों ज़िम्मेदार ठहराया नहीं गया ?
ना तो गुजरात हादसे में, और ना ही दिल्ली हादसे में अब तक किसी भी सरकार ने अपनी जिम्मेदारी नहीं ली है। अलबत्ता एक दूसरे के ऊपर दोषरोपण जरूर चल रहा है। जिस भी परिवार के बच्चे या बड़े इस अकाल हादसे का कारण बने हैं उन परिवारों से भी मिलने कोई भी नेता नगरी नहीं पहुंची क्योंकि वक्त चुनाव का चल रहा है साहब अभी तो नेताजी चुनाव में व्यस्त है जब चुनाव का प्रचार थम जाएगा तब उसके बाद पहुंच ही जाएंगे आंसू ही तो पूछने हैं ।
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