सोशल मीडिया के बजाय स्थानीय पत्रकार की रिपोर्ट पर करें विश्वास
आपकी स्थानीय समस्याओं के लिए ना तो गूगल आएगा ना फेसबुक ,, आएगा तो आपके आसपास रहने वाला पत्रकार काम
सभी पार्टियों ने सोशल मीडिया पर विज्ञापन जारी कर लोगों को भरमाने का किया पूरा काम
केशव भुराड़िया
लोकसभा का चुनाव अपने अंतिम दौर में है , और इस समय भीषण गर्मी के बावजूद नेताओं के कदम रुक नहीं पा रहे । कह सकते हैं कि प्राकृतिक गर्मी से ज्यादा राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है । और राजनीतिक तापमान न सिर्फ जमीन पर चढ़ा हुआ है बल्कि जमीन से ज्यादा वर्चुअल स्पेस ( जिसे हम काल्पनिक दुनिया का सकते हैं ) में भी चढ़ा हुआ है ।
दरअसल आजकल लगभग सभी व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं । चाहे वह फेसबुक हो , व्हाट्सएप हो इंस्टाग्राम हो , ट्विटर हो या कोई और सोशल मीडिया का प्लेटफार्म लगभग हर व्यक्ति का सोशल मीडिया पर कहीं ना कहीं अकाउंट बना हुआ है और वह उसे पर एक्टिव भी रहता है । लोकसभा चुनाव में इसी का फायदा सभी पार्टियों ने उठाया है और मतदाताओं को लुभाया जा सके , ऐसे विज्ञापन तैयार करवाए गए हैं जो कि मतदाताओं को लुभाते हैं । कहां जा सकता है कि एक तरीके से यह आंख में धूल झोंकने जैसा है । क्योंकि सोशल मीडिया पर जो विज्ञापन दिखाई पड़ते हैं हो सकता है कि वह सच्चाई से कोसों दूर हो । क्योंकि सोशल मीडिया ना तो उन विज्ञापनों की सच्चाई को परख रहा है ना ही सोशल मीडिया का कोई ऐसा कोई नुमाइंदा है जो जमीन पर जाकर , जो विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं उनको सच जानने की कोशिश कर रहा है ।
अपने स्थानीय पत्रकार पर करें भरोसा
सोशल मीडिया पर चल रहे राजनीतिक विज्ञापनों को लेकर
समाजसेवी एवं राजनीतिक विश्लेषक कमल बिंदुसार का मानना है कि यह सिर्फ आंखों का धोखा है । लोगों को चाहिए कि आपके आसपास रहने वाला जो स्थानीय पत्रकार है उसकी रिपोर्ट पर भरोसा करें । उससे पूछे , खुद भी जानकारी जुटाएं । ना कि किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाले राजनीति विज्ञापन पर भरोसा करें ।
सोशल मीडिया पर विज्ञापन तब तक जब तक मतदान नहीं राकेश अग्रवाल
कुछ ऐसा ही मानना पंचकूला विकास मंच के सदस्य राकेश अग्रवाल का भी है । राकेश अग्रवाल से जब हमने इस बात को लेकर सवाल पूछा तो उनका कहना था की पार्टियों को तो सिर्फ चुनाव जीतना है , यह जो विज्ञापन आपको दिखाई पड़ रहे हैं यह सिर्फ उसी दिन तक है जिस दिन तक उनका मतदान नहीं हो जाता । जिन जगहों पर मतदान हो चुका है उन जगहों पर विज्ञापन क्यों नहीं दिखाई पड़ते । वह कहते हैं कि 25 मई को हरियाणा में मतदान खत्म होते ही अब हरियाणा के सोशल मीडिया अकाउंट यूजर के पास विज्ञापन नहीं दिखाई पड़ रहे अब विज्ञापन चंडीगढ़ पंजाब हिमाचल या उन सीटों के मतदाताओं को दिखाई पड़ रहे हैं जिनके मतदान 1 जून को होने हैं ।
आपकी लोकल समस्याओं के लिए आपका लोकल पत्रकार ही आपके साथ होगा ना कि सोशल मीडिया ओ पी सिहाग
पीपल फ्रंट ऑफ़ पंचकूला फोरम के अध्यक्ष ओ पी सिहाग का मानना है की स्थानीय पत्रकार खुलकर सभी तरह की रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं वह अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी हो सकती है । परंतु सोशल मीडिया पर सिर्फ वन वे ट्रैफिक ही दिखता है । सच क्या है और झूठ क्या है यह सिर्फ एक पत्रकार बता सकता है ना कि सोशल मीडिया उनका कहना है कि मैं तो सोशल मीडिया पर भरोसा करता ही नहीं हूं मैं तो पत्रकारों की रिपोर्ट को पढ़ता हूं और इस पर भरोसा करता हूं ।
विभिन्न विभिन्न लोगों से जब हमने इस संबंध में बात की तो सभी का एक मत तो है की सोशल मीडिया जिसे आम बोलचाल की भाषा में काल्पनिक दुनिया भी कहते हैं , सच दिखाने में कही नहीं है । सच दिखाने के लिए हमेशा स्थानीय पत्रकार की ही जरूरत होती है । और वैसे भी जब हमें जरूरत होती है तब स्थानीय पत्रकार ही काम आता है ना कि सोशल मीडिया । तो भरोसा उसी की खबर पर लोगों को करना चाहिए ,खबर चाहे अच्छी हो या बुरी ।
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