खरी – अखरी : मोदी आत्म चिंतन कर देश को बतायें कि 5 साल क्या वे सार्वजनिक जीवन में रहने लायक हैं !
जिस दिन मोदी ने अपने भाषण में धार्मिक विभाजन की चर्चा नहीं की तो उसी समय मोदी को हटाने में ना भाजपा – संघ देरी करेगा ना ही समर्थक – कार्यकर्ता
राजनीतिक समालोचकों के मुताबिक भारत तो छोड़िए विश्व में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संभवतः ऐसे अकेले व्यक्ति होंगे जो अपनी बोली में जहां धुआँ ना भी हो तो वहां भी आग लगाने की क्षमता रखते हैं, साथ ही मामूली से मामूली चीज का भी संबंध वे मुसलमानों और विपक्षी नेताओं के बीच जोड़कर उसका दानवीकरण करने में सक्षम हैं। जिसके अनूठे नजारे उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने भाषणों में बखूबी पेश किये हैं।
भारतीय राजनीति की करीबी जानकारी रखने वालों की माने तो भाजपा और उसकी मातृ संस्था के प्रचार अभियान का मूलाधार सदा से ही मध्यकालीन इतिहास को विरूपित कर मुसलमानों का दानवीकरण तथा जातीय – लैंगिग पदक्रम पर आधारित प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति का महिमामंडन रहा है। जिसके लिए समयानुसार इन्होंने अलग – अलग विषयवस्तु का प्रयोग किया है। जैसे राम मंदिर आन्दोलन के मूल में मुस्लिम बादशाहों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था। इसी तरह देश की सुरक्षात्मक विषयवस्तु के मूल में भारत का दुश्मन पाकिस्तान। 2014 से प्रसंग बदलकर अच्छे दिन आयेंगे, हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रूपये आयेगें, हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के जुमले उछाले गए। 2019 के चुनाव में पुलवामा – बालाकोट को मुद्दा बनाकर यह बताने की कोशिश की गई कि केवल बीजेपी सरकार ही देश की रक्षा कर सकती है। इस (2024) चुनाव में मोदी व भाजपा को उम्मीद थी कि राम मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी नैया पार लगा देगी मगर जल्दी ही साफ हो गया कि जनता को इन मुद्दों से ज्यादा चिंता अपनी गिरती सामाजिक – आर्थिक स्थिति की है। इसलिए भाजपा ने पितृ संगठन की पर्दे के पीछे से सिखाई जाती रही मुसलमानों की खिलाफत तथा समाज को धार्मिक आधार पर बांटने वाली पुरानी तरकीब को अपनाते हुए मुसलमानों को अपना चुनावी मुद्दा बना लिया।
आरक्षण और सकारात्मक भेद-भाव पर कांग्रेस द्वारा दिए जा रहे जोर ने भाजपा की नींद उड़ाकर रख दी। इसी के चलते जहां एक ओर संघ के मुखिया ने यह कहा कि वह आरक्षण का विरोधी नहीं था (गलतबयानी) तो दूसरी ओर मोदी ने यह कहना शुरू कर दिया कि कांग्रेस दलितों और पिछड़ों के लिए निर्धारित कोटा को घटाकर मुसलमानों को आरक्षण देना चाहती है जो संविधान के खिलाफ है। बाबा साहेब ने आरक्षण का जो अधिकार दलितों, पिछड़े वर्गों, आदिवासियों को दिया है उसे कांग्रेस और इंडिया एलायंस धर्म के आधार पर मुसलमानों को देना चाहते हैं। मोदी ने तो दो कदम आगे बढाते हुए यहां तक कहना शुरू कर दिया कि यह गठबंधन हिन्दू महिलाओं का मंगलसूत्र छीनकर मुसलमानों को दे देगा। ऐसा कहकर मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र की आलोचना तो की ही मुसलमानों पर निशाना साधने के साथ ही हिन्दू महिलाओं को डराने का काम करते हुए एक तीर से कई निशाने लगाये हैं।
सवाल उठता है कि कोई बार – बार इतना झूठ बोल कैसे लेता है, उसे इतना भरोसा कहां से आता है कि लोग उसके झूठ के पुलिंदे पर विश्वास कर लेंगे ? इसके जबाव में कहा जा सकता है कि वे जानते हैं कि संघ – भाजपा परिवार के प्रतिबध्द कार्यकर्ता, उसका आईटी सेल, कार्पोरेट घरानों द्वारा नियंत्रित टीवी चैनल्स, अखबार उसके झूठ से आमजनों का माइंड वास कर देंगे। इस चुनाव में तो पीएम मोदी ने माता को दरकिनार कर मौसी को चुनाव में घसीट लिया। भाजपा के गौ माता केन्द्रित नैरेटिव में कभी भी भैंस मौसी को जगह नहीं मिली। मगर जब इस चुनाव के बीच मोदी मय भाजपा का यह सत्य उजागर हो गया कि उसने गौ हत्यारों – गौ मांस निर्यातकों से करोड़ों रुपये चंदे के रूप में लिए हैं तो मोदी ने चुनाव में यह कहते हुए भैंस की ऐंट्री करा दी कि अगर आपके पास दो भैंसे हैं तो कांग्रेस उनमें से एक भैंस को आपके बाड़े से खोलकर ले जायेगी।
राजनीतिक समीक्षकों को मालूम है कि 2024 के आम चुनाव में मोदी द्वारा किए जा रहे प्रचार की पूर्णता बिना पाकिस्तान के हो ही नहीं सकती। इसीलिए तो मोदी ने फरमाना शुरू किया कि पाकिस्तान चाहता है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने ताकि बालाकोट जैसे आपरेशन ना हों। यह कहना कि “मोदी यह भूल गए” कहने के बजाय यह कहना ज्यादा उचित होगा कि मोदी ने अहंकार वश जानबूझकर इस बात को अनदेखा किया कि राहुल गांधी की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने ही पश्चिम के शक्तिशाली देशों की इच्छा के खिलाफ जाते हुए साहसिक निर्णय लेकर बांग्लादेश बनवाकर पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये थे। मोदी ने पीएम पद की गरिमा को उस दिन यह कहते हुए कलंकित कर दिया कि तेजस्वी नवरात्रि के पवित्र पर्व के दौरान मछली खाकर हिन्दुओं को उसी तरह अपमानित कर रहे हैं जिस तरह मुगल बादशाह मंदिरों को गिराकर किया करते थे। एक विपक्षी नेता की मामूली तस्वीर को मुगलों और वर्तमान मुसलमानों को जोड़ कर मोदी ने यह बता दिया है कि वे किसी भी चीज का उपयोग मुसलमानों और विपक्षी नेताओं को बदनाम करने के लिए कर सकते हैं।
देखा जा रहा है कि पिछले 10 सालों में देश के भीतर ऐसा मोदीमय मीडिया पैदा हुआ है जो मोदी के आलोचकों को अपना शत्रु मानता है। इसमें देश के बड़े कारोबारियों की मिल्कियत वाले प्रकाशन और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया, जिसने मोटी तनख्वाह वाले पत्रकारों को एक दशक से ऐन केन प्रकारेण मोदी की सरकार को बनाये रखने के लिए काम पर लगा रखा है। इनमें से ही कुछ मुंह लगे पत्रकारों के जरिए ही देशवासियों को पता चला कि 74 वर्षीय नरेन्द्र मोदी अल्प शिक्षित हैं, उनने 35 सालों भीख मांगी है और कई सालों तक तो हिमालय में तपस्या भी की है। कुछ तो अपनी कल्पना शक्ति के बल पर दो हजार रुपये के नोट पर लगी चिप ढूंढते हैं, तो कुछ गोबर में हीरा खोजते हैं ।
वैसे तो पूरा देश पीएम नरेन्द्र मोदी की एक अदद प्रेस कांफ्रेंस देखने के लिए पिछले 10 बरस से तरस रहा है। वाराणसी में गंगा किनारे विचरण करते हुए मोदी ने यकायक सेकुलर चोला ओढ़कर चहेती मीडियाकर्मी से कहा कि “जिस दिन मैं (मोदी) हिन्दू – मुस्लिम करने लगूंगा उस दिन मैं (मोदी) सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रह जाऊंगा” । उस दिन मोदी का यह बयान पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए आश्चर्य एवं सदमे की तरह रहा होगा। पत्रकारिता धर्म को गंगा में विसर्जित करते हुए उस पत्रकार ने मोदी के इस बयान को बिग ब्रेकिंग के रूप में प्रसारित किया। सवाल यह है कि महिला पत्रकार ने मोदी से यह क्यों नहीं कहा कि हाल ही में तो आपने कांग्रेस के न्याय पत्र पर मुस्लिम लीग की छाया बतलायी थी। आपने लोगों से यह भी तो कहा था कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो हिन्दू महिलाओं के मंगलसूत्र छीनकर कई बच्चे वालों (मोदी द्वारा मुसलमानों के लिए कहा जाने वाला वाक्य) को दे देगी। महिला पत्रकार को मोदी को यह भी याद दिलाना चाहिए था कि कैसे उन्होंने 10 साल हिन्दू – मुस्लिम और भारत – पाकिस्तान करते हुए गुजार दिये। मोदी के प्रायोजित इन्टरव्यू में सवाल और जबाव पहले से ही तय होते हैं। उनमें एक भी ऐसा सवाल नहीं होता जो मोदी को असहज करता हो। उन सवालों में न तो नोटबंदी समेत तमाम असफल योजनाओं का जिक्र होता है ना ही मणिपुर की घटनाओं का। ना ही महिला पहलवानों के साथ हुई ज्यादितियों का ना ही आदिवासी के सिर पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा मूत्र त्याग करने का। ना ही भाजपा प्रवेश कर रहे भृष्टाचारी कहे जाने वाले विपक्षियों का ना ही इलेक्टोरल बांड्स का ना ही शासकीय प्रधानमंत्री आपदा प्रबंधन कोष होने के बाद भी प्रायवेट पीएम केयर फंड गठित करने का। महिला पत्रकार ने कठुआ, उन्नाव, हाथरस, वाराणसी (जहां से खुद मोदी चुनाव लड़ रहे हैं) में घटी शर्मनाक घटनाओं पर चर्चा की गई ना ही बिलकिस बानो पर सवाल पूछा गया।
56 इंची सीनाधारी मोदी का यह दावा कि हिन्दू – मुस्लिम करने पर वे सार्वजनिक जीवन के योग्य नहीं रह जायेंगे ज्यादा देर जिंदा नहीं रह सका। अगली सुबह ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपनी ही जबान से महाराष्ट्र के डिंडौरी की आमसभा में यह कहते हुए उस दावे की भ्रूण हत्या कर दी कि अगर कांग्रेस की सरकार आयेगी तो वह सरकार पूरे बजट का 15 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को दे देगी। उसी दिन मुंबई की सभाओं में उन्होंने राम मंदिर का जिक्र करते हुए कहा कि यदि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे जीवित होते तो नकली शिवसेना (उध्व ठाकरे गुट) द्वारा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का विरोध करने से दुखी होते। नरेन्द्र मोदी और भाजपा देशवासियों को यह नहीं बताती कि राम मंदिर में की गई प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति वह मूर्ति नहीं है जिसने सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीता है। वह यह भी नहीं बताती कि आधे-अधूरे निर्मित मंदिर में बिना मुहूर्त धर्म विरुद्ध प्राण प्रतिष्ठा करवाने का एक मात्र उद्देश्य आम चुनाव की होने वाली तारीखों की घोषणा को ध्यान में रखते हुए चुनाव में उसका लाभ उठाने की गरज था। इन्हीं वजहों से धर्मधुरी शंकराचार्यों ने भी राम मंदिर में की जाने वाली प्राण प्रतिष्ठा को अनुचित कहा था। दूसरी बात भाजपा और नरेन्द्र मोदी का चुनावी विमर्श हिन्दू – मुस्लिम के बिना संभव नहीं है क्योंकि अपने जन्म से ही भाजपा की मातृ संस्था का वैचारिक आधार ही धार्मिक विभाजन रहा है। ऐसे में जिस दिन मोदी ने इससे तौबा कर ली उसी दिन उन्हें हटाने में ना भाजपा – संघ देर करेगा ना ही कार्यकर्ता – समर्थक।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के आम चुनाव में कुछ चीजें खुलकर सामने आई हैं जैसे सभी पार्टियों में जातिवाद हावी है तभी तो सभी ने जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवारों का चयन किया है। क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए राष्ट्र से ज्यादा राज्य की राजनीति मायने रखती है। यह भी देखने को मिला कि धन, संसाधन, संगठनात्मक ताकत होने के बाद भी भाजपा पहले चरण का मतदान होने के तत्काल बाद रक्षात्मक हुई। खास बात यह है कि नरेन्द्र मोदी द्वारा लगातार कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम तुष्टीकरण के मुद्दे उछालने से यह पक्का हो गया है कि भाजपा अपना हिन्दूवादी राजनीतिक मुद्दा निकट भविष्य में भी छोड़ने वाली नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भारतीय राजनीति जलेबी की तरह है। दिग्गजों के हर बयान उनके पहले बयान से ज्यादा घुमावदार होते हैं। इसलिए यहां कुछ भी सीधा नहीं है, ना ही कोई सत्य अंतिम है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता, स्वतंत्र पत्रकार
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