दो नावों में सवार हरियाणा के निर्दलीय विधायक
साढ़े चार साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद नीलोखेड़ी के विधायक एवं हरियाणा वन विकास निगम के चेयरमैन धर्म पाल गोंदर ने अन्य दो निर्दलीय विधायकों के साथ कमल को छोड़ कर हाथ का साथ देने का फैसला लिया है। विधायक धर्मपाल गोंदर का यह फैसला कितना सही है।इसका निर्णय आने वाला समय करेगा। परंतु एक बात पूरी तरह साफ हो गई है कि हरियाणा में भाजपा सरकार को कोई खतरा नहीं है। सवाल यह है कि विधायक ने छह महीने पहले भाजपा से समर्थन वापस क्यों लिया। इसके लिए विधायक अनेक तर्क दे रहे हैं कि साढ़े चार साल में भाजपा में उनको कोई पूछता तक नहीं था। परंतु इन तर्कों में कोई दम नजर नहीं आता। भाजपा को समर्थन देने के बाद वह अक्सर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का गुणगान करते रहे।यदि विधायक के साढ़े चार सालों के लेखे जोखे पर नजर डाली जाए तो एक बात स्पष्ट है कि भाजपा को समर्थन देने के बावजूद वह भाजपा से पूरी तरह वफादारी नहीं निभा सके।वह दो नावों पर सवार रहे। एक पैर भाजपा और दूसरा पैर कांग्रेस की नाव में रहा। कांग्रेस नेताओं से नजदीकियों के कारण वह भाजपा नेताओं की आंखों में किरकिरी बने रहे। मजबूरी में भाजपा ने उन्हें गले तो लगाए रखा ।परंतु वह भाजपा की आंख का तारा नही बन सके। विधायक बनने के दो साल बाद हरियाणा कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता से मुलाकात के बाद उन्हें भाजपा सरकार में अविश्वास की नजर से देखा जाने लगा। मुलाकात की भनक लगने पर उन्होंने भाजपा नेताओं में अपना विश्वास पूरी तरह खो दिया।
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