चैत्र नवरात्र कल से, जानिए कौन सी देवी की पूजा किस दिन करें ?
नवरात्र में माता की सरल पूजा विधि
खबरी प्रशाद, दिल्ली/प्रेरणा ढींगरा
नवरात्र को मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माना जाता है। इस उत्सव को भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनाया जाता है। इस पूजा को वैदिक युग से पहले प्रागैतिहासिक काल के समय में भी मनाया जाता था। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्र के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।
नवरात्रि के दौरान माता के सभी स्वरूपों की आराधना की जाती है जिससे इंसान की सारी मनोकामनाएं पूरी हो सके। पूजा के साथ-साथ लोग उपवास भी रखते हैं और माता की भक्ति में लीन हो जाते हैं। नवरात्रि शब्द संस्कृत से लिया गया है और उसका अर्थ है, नो रातों का समय। इन नौ रातों में शक्ति यानी देवी की पूजा की जाती है। 1 वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं। माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन। माघ और आषाढ़ में आने वाले नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि भी कहा गया है। देवी के सम्मान और अपनी भक्ति दिखाने के लिए गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। आपको बता दे की उदया तिथि के आधार पर चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल से शुरू होगी। इस नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि भी कहा गया है जो इस वर्ष 8 अप्रैल को रात 11:50 पर शुरू हो जाएंगे। नवरात्रि में पहले दिन माता शैलपुत्री, फिर ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री और फिर दुर्गा की पूजा की जाती है।
माता शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की आराधना की जाती है। इस दिन लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और उनका वाहन वृषभ है। इन्हें गाय का घी या गाय के घी से बना कोई भी पदार्थ का भोग चढ़ाया जाता है।
माता ब्रह्मचारिणी
दूसरा दिन नवरात्रि का माता ब्रह्मचारिणी का होता है, यह भी माता दुर्गा का एक स्वरूप है। इस दिन लोग हरे रंग का वस्त्र धारण करते हैं और उसे ही पहनकर पूजा भी की जाती है। हरा रंग जीवन में विकास और ऊर्जा को दर्शाता है। जो भी व्यक्ति मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है। इस दिन शक्कर का भोग माता की चरणों में चढ़ाया जाता है। माता पार्वती ने दूसरा जन्म लेकर शिवजी की आराधना करके उन्हें पति के स्वरूप में पानी की कोशिश की और इस कोशिश के दौरान उनका नाम माता ब्रह्मचारिणी पड़ा।
माता चंद्रघंटा
इस दिन व्यक्ति भूरे रंग का वस्त्र को धारण करके माता की आराधना करता है। भूरा रंग बुराई को नष्ट करता है। माता का वाहन शेर है और उन्हें दूध का भोग चढ़ाया जाता है। माता के मस्तक पर आधा चंद्र बना हुआ है, जिसके कारण उनका नाम चंद्रघंटा पड़ गया। इस दिन माता की आराधना या पूजा करने से व्यक्ति को संसार के सभी कष्ट से छुटकारा मिल जाता है। देविका यह स्वरूप सोने के समान चमकीला है।
माता कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहने जाते हैं। इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहने से माता प्रसन्न होती है और प्रसन्नता का आशीर्वाद भी देती है। यह रंग खुशी देता है। इस दिन भोग में मालपुआ चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन माता ने ही संसार को जीवन दिया था।
स्कंद माता
पंचम नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। सफेद रंग को इस दिन बाद शुभ माना गया है। सफेद रंग को ध्यान शक्ति और पवित्रता का रूप माना जाता है। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते है और मां का वाहन सिंह है। प्रसाद के तौर पर केला मां को चढ़ाया जाता है।
कात्यायनी माता
आपको बता दे कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका नाम कात्यायनी पड़ा गया। कात्यानी माता दुर्गा का सबसे शक्तिशाली स्वरुप माना गया है, युद्ध की मां भी कहा गया है। कात्यानी माता के स्वरूप ने ही महिषासुर का वध किया था और तभी यह दिन लाल रंग को संबोधित करता है। इस दिन व्यक्ति लाल रंग का वस्त्र धारण करके माता कात्यानी की आराधना करता है। भक्त इस दिन माता के चरणों में शहद का भोग चढ़ते हैं।
माता कालरात्रि
नवरात्र के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। कालरात्रि का अर्थ है जिस रात कल की मृत्यु हो। मां दुर्गा ने स्वरूप को राक्षसों का वध करने के लिए लिया था। इस रूप को सांवले और निडर का प्रतीक माना गया है तभी लोग इस दिन नीला वस्त्र पहनते हैं। इस दिन माता की पूजा करने से भूत और पिसाच का डर व्यक्ति के मन से हट जाता है। गुड का भोग इस दिन चढ़ाया जाता है। कालरात्रि भय को समाप्त करती है। माता कालरात्रि की सवारी गधा है। मां कालरात्रि देवी का सबसे भयानक रूप है।
माता महागौरी
नवरात्रि का आठवां दिन माता मां गौरी को समर्पित किया गया है। गुलाबी वस्त्र धारण करके लोग पूजा करते हैं। अपने कष्ट से मुक्त होने के लिए भक्त इस दिन माता की पूजा और आराधना करते हैं। माता गौरी का वाहन बैल है। जागे जागे लोग भंडारा करवाते हैं और माता का प्रसाद भी बांटते हैं। इस दिन हलवा पुरी का भोग चढ़ाया जाता है। माता महागौरी के सभी वस्त्र सफेद है। ऐसा माना जाता है की माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए घर तपस्या की थी जिस तपस्या से उनका रंग काला पड़ गया था और जब शिवजी ने इनकी आराधना से खुश होकर इन्हें स्वीकार कर तब माता पार्वती को उन्होंने गंगाजल से स्नान करवाया इसके बाद वह मां गौरी कहलाई। इस दिन जो भी व्यक्ति मन की पूजा करता है उनका वैवाहिक जीवन सफल और कुशल होता है।
माता सिद्धिदात्री
नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नौवे दिन को माता सिद्धि दात्री के स्वरूप में पूजा जाता है। इस दिन जो भी माता की आराधना करता है उसे व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त होती है। एक पुराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री कि घोर तपस्या करने के बाद ऑटो सीढ़ियां को प्राप्त किया था। उनकी ही कृपा से शिवजी का आधा शरीर देविका हो गया था जिससे बाद में शिव जी का नाम अर्धनारीश्वर पड़ा। इस दिन माता को खीर का भोग चढ़ाया जाता है। जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता।
भारत में विभिन्न जगह के अंदर नवरात्रि अलग तरीके से मनाई जाती है। कुछ लोग भारत के अंदर अष्टमी के दिन माता को पूजते है तो कुछ लोग नवमी के दिन और बाकी के लोग दसवीं के दिन माता को पूजते है। पूजा के आखिरी दिनों में या तो सात कन्या,या नौ कन्या या 11 कन्या को भोग लगाया जाता है और तभी नवरात्रि की पूजा समाप्त होती है। भोग लगाने का सही समय सुबह 12:00 तक होता है। इन दिनों में सात्विक भोजन, साफ़ सफाई, देवी आराधना,भजन-कीर्तन, जगराता, मंत्रों का जाप और देवी कि आरती का खास ध्यान रखना पड़ता है और प्याज,लहसुन,शराब,मांस-मछली का सेवन, लड़ाई, झगड़ा, कलह, कलेश, काले कपड़े और चमड़े की चीजें न पहने, दाढ़ी,बाल और नाखून काटने से परहेज़ भी करना पड़ता है।
चैत्र नवरात्रि की पूजा कैसे करें !
नवरात्रि की शुरुआत में मिट्टी के घड़े को घर के अंदर शुभ मुहूर्त देखकर स्थापित किया जाता है। घड़े को घर के ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। घड़े के अंदर सबसे पहले थोड़ी सी मिट्टी डाली जाती है और फिर जौ के दाने बो कर उनपर पानी का छिड़काव करें। इस घड़े से पूजा की जाती है। जहां पर घड़े को स्थापित किया गया है वहां पर साफ सफाई करके गंगाजल छिड़कना चाहिए। गंगाजल छिड़कने के बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए और फिर मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति से पूजा की शुरुआत करें। फिर एक तांबे के कलश को लाल मोली से बांधे और उसे कलश को पानी से भरे। उस कलश में सिक्का, अक्षत, सुपारी, लौंग का जोड़ा, दूर्वा घास डाल दें। मां को प्रसाद चढ़ाएं और फिर कलश को स्थापित करके मां की पूजा शुरू करें। मां की आराधना में कुमकुम, कपूर, जनेऊ, धूपबत्ती, निरांजन, आम के पत्ते, पूजा के पान, हार-फूल, पंचामृत, गुड़ खोपरा, खारीक, बादाम, सुपारी, सिक्के, नारियल, पांच प्रकार के फल, चौकी पाट, कुश का आसन, नैवेद्य और हल्दी की सामग्री का प्रयोग करें।
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