मरता क्या न करता : पंजाब मे बीजेपी के साथ चरितार्थ हुई यह कहावत
पंजाब में नहीं बनी गठबंधन पर बात, भाजपा अकेले उतरेगी लोकसभा के रण में
इस बार पंजाब में भाजपा अकेले लड़ेगी लोकसभा का चुनाव, शिरोमणि अकाली के साथ नहीं बन पाई बात ।
खबरी प्रशाद चंडीगढ़ / दिल्ली
पंजाब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आज सोशल मीडिया पर जारी अपने एक वक्तव्य में बताया की लोकसभा चुनाव मे पंजाब की 13 सीटों पर बीजेपी को अकेले ही मैदान में उतरना पड़ेगा । आपको बताते चलें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन था तब गठबंधन ने चार सिम जीती थी जिसमें दो भाजपा के खाते में और दो अकाली के खाते में आई थी । मगर किसान आंदोलन पार्ट वन में शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था । तब से पंजाब में भारतीय जनता पार्टी अपनी जड़े बनाने में लगी हुई है । हालांकि पिछले कई दिनों से भाजपा का नेतृत्व और अकाली नेतृत्व के साथ बंद करने में गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी मगर सूत्रों से जो जानकारी मिली है वह सीटों के बंटवारे को लेकर है जहां भारतीय जनता पार्टी इस बार सीट ज्यादा मांग रही थी और अकाली उतनी सीट देने को तैयार नहीं थी जिसकी वजह से गठबंधन पर बात नहीं बन पाई ।
आखिर क्या कहा सुनील जाखड़ ने
सुनील जाखड़ ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करते हुए इस बात की सूचना दी, कहां पंजाब के लोगों के लिए एक फैसला लिया गया है। सुनील जाखड़ वीडियो में बोले की “बीजेपी ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला ले लिया है। पार्टी ने यह फैसला सब की राय, पार्टी के वर्कर्स की राय, नेताओं की राय , जवानी ,किसानी, पंजाब के व्यापारी ,मजदूर और बाकी सब के भविष्य के लिए लिया है क्योंकि जो काम प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब में किया है वह काम किसी ने आज तक नहीं किया।
किसानों से एक-एक फसल का दाना 10 साल से एमएसपी पर उठाया गया और हफ्ते के अंदर ही फसलों का भुगतान किया गया। करतारपुर सिंह का गलियारा तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनाया गया और आगे भी पंजाब के भविष्य के लिए हम ऐसे सुनहरे फैसले लेंगे। मुझे पुरा यकीन है कि पंजाब के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर देश की उन्नति का समर्थन करेंगे।
आखिर गठबंधन क्यों टूटा
आपको बता दे की 2019 में अकाली दल और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। काफी समय से दोनों पार्टी के गठबंधन में दिक्कत आ रही थी पर आखिर ऐसा क्यों? दरअसल किसान आंदोलन के बाद दोनों पार्टी के बीच टकराव बढ़ा और दोनों पार्टी की सहमति किसी बात पर देखने को नहीं मिल रही थी। इसका असर विधानसभा चुनाव पर भी देखने को मिला जब आम आदमी पार्टी ने 117 सीटों में से 92 सीटों पर जीत हासिल कर ली। आपको बता दे की पंजाब से पहले उड़ीसा में भी गठबंधन की बात नहीं बन पाई थी। बीजेपी का बीजेडी के साथ गठबंधन उड़ीसा के अंदर नहीं हो पाया और अब पंजाब में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जहां एक तरफ बीजेपी 400 सीटों जीतने का सपना लेकर लोकसभा चुनाव में उतरने जा रही है । वहीं दूसरी तरफ उनके खुद के पुराने रिश्ते पार्टी के साथ टूटते नजर आ रहे हैं।
अब देखना है कि लोकसभा चुनाव के रण में अकेले भारतीय जनता पार्टी कितनी दूर तक जा पाएगी । यह तो आने वाला वक्त बताएगा । मगर भारतीय जनता पार्टी नेताओं और पंजाब की स्थानीय टीम की कोशिश यह रहेगी कि कम से कम 2019 का प्रदर्शन तो दोहराया जरूर जाए भले सीटों में बढ़ोतरी न हो लेकिन जो दो सीट मिली थी वह किसी हालत में जाने ना पाए ।
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