क्या ममता और स्टालिन सरकार CAA लागू करने से रोक सकती हैं?
जानिए क्या है राज्यों के पास अधिकार
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने बड़ा दांव चल दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही सीएए देशभर में लागू हो गया है। एनडीए के अलावा अन्य कुछ दलों ने केंद्र के फैसले का स्वागत किया है। वहीं, कांग्रेस, टीएमसी के अलावा कई दलों ने इसका पुरजोर विरोध भी किया है।
सीएए का विरोध
पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु की सरकार ने तो इस कानून को अपने राज्य में लागू करने से साफ इनकार कर दिया है। विरोधी दलों की दलील है कि ये संप्रदाय में विभाजन करने वाला कानून है। कानून को मुस्लिम विरोधी भी बताया जा रहा है। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जाने वाली, लेकिन फिर भी कुछ राज्य सरकारें इसे लागू नहीं होने देने पर अड़ी हैं।
विरोध में कौन-कौन से राज्य?
पिनरायी विजयन, सीएम केरल: हमारी सरकार ने बार-बार कहा है कि सीएए केरल में लागू नहीं किया जाएगा। ये मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है। सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी इस कानून के खिलाफ पूरा केरल एकजुट होगा।
एमके स्टालिन, सीएम तमिलनाडु: सीएए विभाजनकारी है और इसे तमिलनाडु में लागू नहीं किया जाएगा। इससे किसी को फायदा नहीं होगा।
ममता बनर्जी, सीएम पश्चिम बंगाल: हम बंगाल में किसी भी सूरत में एनआरसी डिटेंशन कैंप बनाने की अनुमति नहीं देंगे और न ही यहां किसी को भी लोगों के अधिकार छीनने की इजाजत देंगे। इसके लिए मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं।
मुस्लिमों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी: ओवैसी
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी सीएए के खिलाफ झंडा बुलंद किया हुआ है। ओवैसी ने कहा कि सीएए मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देगा। उन्होंने ये भी कहा कि केंद्र का ये कदम कई लोगों को फिर से विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर करेगा।
केंद्र के कानून को मना कर सकते हैं राज्य?
तीन मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्यों में सीएए को लागू होने से इनकार कर दिया है। सवाल उठता है कि क्या वाकई में केंद्र के कानून को कोई भी राज्य सरकार लागू होने से मना कर सकती है।
वरिष्ठ वकील मनीष भदौरिया ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून राज्यों को लागू करना हीं पड़ता है, क्योंकि राज्यों के पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है, लेकिन अगर किसी राज्य को कानून लागू करने में कोई आपत्ति है या उन्हें लग रहा है कि नागरिकों के अधिकार का हनन हो रहा है तो वो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट कानून पर स्टे या केंद्र को कोई निर्देश देता है तो उस स्थिति में मामला अलग हो सकता है।
क्या कहता है संविधान?
संविधान कहता है कि सीएए को राज्य सरकारों को लागू करना ही होगा, क्योंकि इसे संसद से पारित किया गया है और नागरिकता का मामला संघ सूची में आता है। अनुच्छेद 246 में संघ और राज्यों के बीच शक्ति का वर्गीकरण किया गया है। इसमें तीन स्तरों पर कानून निर्माण शक्तियों का विभाजन किया गया है। संघ सूची में रक्षा, रेलवे, विदेश और बैंकिंग जैसे मामले आते हैं। राज्य सूची में भूमि, शराब, पुलिस, जन स्वास्थ्य एवं सफाई, कृषि जैसे मामले हैं, जबकि समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण, जैसे मामले शामिल हैं।
अमित शाह ने साफ की तस्वीर
वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री ने साफ कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी झूठ बोल रहे हैं कि सीएए के लागू होने से देश के अल्पसंख्यक अपनी नागरिकता खो देंगे। सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रवधान नहीं है।
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