सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को किया रद्द, एसबीआई ने मांगा समय
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्क्रीम को रद्द किया था यह कहते हुए कि यह स्कीम संविधान के अंदर भाषण , सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी स्कीम संविधान के प्रतिकूल है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को यह भी आदेश दिया था कि वह इस स्कीम की पूरी जानकारी इकट्ठा करें।
जानकारी देने के लिए एसबीआई से मांगी 30 जून तक की मोहलत
इस केस के चलते सुप्रीम कोर्ट ने चंदा इकट्ठा करने की जानकारी साझा करने के लिए 6 मार्च तक का समय एसबीआई को दिया था और अब एसबीआई ने कोर्ट का दरवाजा खटका कर समय को बढ़ाने के लिए कहा है। एसबीआई ने 30 जून 2024 तक की मोहलत सुप्रीम कोर्ट से मांगी है। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ” वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे पर जो समय सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिया है उसे समय तक आदेश का पालन करने में कुछ व्यावहारिक दिक्कत आ रही है इसलिए वह कोर्ट से चाहते हैं कि उन्हें और थोड़ी मोहलत दी जाए”।
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम आखिर है क्या?
इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले को सुप्रीम कोर्ट में 8 साल हो चुके है ऐसा क्या है इस स्कीन में जिसके लिए इतना विवाद हो रहा है? आपको बता दे की जो चंदा राजनीतिक पार्टियों को दिया जाता है उसमें यह स्कीम काले धन को बढ़ावा देती है। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने का एक माध्यम है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक से खरीद कर गुमनाम तरीके से अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को दे सकता है।
इस स्कीम की घोषणा 2017 में हुई थी और 2018 में भारत सरकार ने स्कीम को कानूनी तौर पर लागू किया था।
इस योजना में चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल , जुलाई और अक्टूबर के महीने में 10 दिन के लिए उपलब्ध किए जाते हैं। योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक से ₹1000, ₹10,000 , ₹10,0000 , 10 लख रुपए या एक करोड रुपए जैसी किसी भी मूल्य के चुनावी बांड खरीदे जा सकते हैं। भारत सरकार का यह योजना चालू करने का मकसद था की इस योजना से राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था साफ हो जाएगी। पर पिछले कुछ सालों में एक सवाल काफी बार उठ चुका है की इस चुनावी बॉन्ड स्कीम से चंदा देने वाले की पहचान न बताकर काले धन को बढ़ावा मिल रहा है। इस चुनावी बॉन्ड योजना के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में ऐसा कहा गया है कि चंदा देने वाले की पहचान ना बताना उसे जानने का अधिकार छीनता है। चुनावी बांड स्कीम से जनता को एक और फायदा है की जो भी राजनीतिक पार्टी सिर्फ धन इकट्ठा करने के लक्ष्य से काम करती है उन पर रोक लगेगी क्योंकि चुनाव बॉन्ड सिर्फ उन्हें पार्टियों को मिलेगा जो पिछले इलेक्शंस का 1% वोट प्राप्त करती है।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर कांग्रेस का सवाल
कांग्रेस नेता और राज्यसभा के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ” इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी एसबीआई जानबूझकर छुपा रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि “सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस जानकारी को ना बताने मैं देरी की जा रही है क्योंकि कुछ छुपाया जा रहा है। चुनाव से पहले इस जानकारी को सार्वजनिक कर दिया जाए”।
वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि “वह चुनाव से पहले एसबीआई का इस्तेमाल करके जानकारी सार्वजनिक नहीं करना चाहती। चुनाव से पहले इस जानकारी को सबके सामने लाया जाए जिससे कई रिश्वत देने वाले सबके सामने आ जाएंगे”।
स्कीम पर कानूनी विशेषण अंजलि भारद्वाज ने कहा है कि “इस बॉन्ड से जुड़ी जानकारी मुंबई ब्रांच में उपलब्ध है लेकिन बैंक फिर भी यह जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रहा है”। अंजलि भारद्वाज ने कहा है कि इस जानकारी को सबके सामने लाने में 4 महीने का समय लगेगा। इस बात को हंसी का विषय बताया है।
अब सवाल यह भी उठना है की एसबीआई क्यों इतना समय ले रही है इस जानकारी को बताने में। क्या इस जानकारी को चुनाव की वजह से सबके सामने नहीं लाया जा रहा? इस जानकारी में ऐसा क्या छुपा है जिसको चुनाव से पहले नहीं बताया जा सकता।
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