साथ चलेंगे, तभी बढ़ेंगेजब हम साथ लड़ेंगे, तो बीजेपी को हाफ करेंगे
खबरी प्रशाद दिल्ली केशव माहेश्वरी
कुछ ऐसी ही भावनाओं के साथ इंडिया गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच आज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ गुजरात और गोवा के लिए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीटो पर गठबंधन हो गया है। पहले आपको बता दें कि इंडिया गठबंधन है क्या? भारत की 28 विपक्षी पार्टियों के द्वारा एक गठबंधन बनाया गया जिसका शाब्दिक अर्थ इंडिया निकलता है इसलिए इसको इंडिया गठबंधन कहा जाता है। इस गठबंधन का उद्देश्य केंद्र से भारतीय जनता पार्टी की सत्ता को उखाड़ फेंकना है। मगर जिस उद्देश्य को लेकर इंडिया गठबंधन बना था, शुरू दिन से ही कहीं ना कहीं वह उद्देश्य कई मौके पर लड़खड़ाता हुआ नजर आया। चाहे वह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हो या फिर एकदम से इंडिया गठबंधन से तख्ता पलट करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या फिर पंजाब के मामले को लेकर अरविंद केजरीवाल सभी लोग इस गठबंधन में अपनी अलग-अलग ताल ठोकते हुए नजर आ रहे थे। कांग्रेस इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए धीरज और धैर्य से काम ले रही थी और इस धीरज और धैर्य का नतीजा है कि इंडिया गठबंधन की गाड़ी जो पटरी से उतरती हुई नजर आ रही थी अब उसके वापस पटरी पर चढ़ने की उम्मीद बनने लगी है। हालांकि अब देर बहुत ज्यादा हो चुकी है । मगर फिर भी अभी भी उम्मीद की किरण बाकी है । इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई जहां पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हुआ और उसके बाद में आज कई राज्यों में में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन का ऐलान हुआ। इस गठबंधन के साथ कांग्रेस नेताओं को भी एक आस जगी है कि गठबंधन के दूसरे साथी जो की इस वक्त भी अलग-अलग पटरी पर अपनी गाड़ी को चला रहे हैं जल्दी ही इंडिया गठबंधन के ट्रैक पर वापस आएंगे और लोकसभा का चुनाव इंडिया गठबंधन के बैनर तले लड़ा जाएगा। जैसा कि इंडिया गठबंधन को बनाने के वक्त उद्देश्य था। इस गठबंधन में सबसे पहला चुनाव चंडीगढ़ के नगर निगम में मेयर पद को लेकर लड़ा गया जहां पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के मेयर पद के उम्मीदवार को समर्थन दिया। मगर नगर निगम में भाजपा से ज्यादा पार्षद वोट होने के बावजूद 8 वोट इनवेलिड करार देने के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की जीत पर मोहर लगने के बाद इंडिया गठबंधन पर भी एक बार दोबारा मोहर उसी दिन लग गई थी। जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना सुप्रीम फैसला प्रीसाइडिंग ऑफिसर पर सुना दिया था।
हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली में गठबंधन तो क्या भाजपा को होगा नुकसान
अगर बात हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली की करें तो इस इन तीनों राज्यों की सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। हरियाणा में लोकसभा की 10 सीट आती है तो चंडीगढ़ में एक सीट आती है तो दिल्ली में 7 सीट आती है। गठबंधन में दिल्ली में चार सीट पर आम आदमी पार्टी पार्टी तो तीन सीट पर कांग्रेस जबकि हरियाणा में 9 सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ेगी और वही चंडीगढ़ में एक ही सीट लोकसभा की है जिस पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत के साथ वहां पर समर्थन करेगी।
मगर पंजाब में दोनों की राह अलग, बीजेपी लेगी इसका फायदा
नॉर्थ इंडिया के प्रमुख राज्यों में जब गठबंधन का ऐलान हुआ है तो पंजाब में आखिर अलग राह क्यों सवाल इस बात का है। दरअसल आज जब गठबंधन का ऐलान हुआ तभी गठबंधन के नेताओं को इस बात का एहसास था कि मीडिया कर्मी इस बात पर सवाल जरूर पूछेंगे कि आखिर पंजाब में गठबंधन की राह अलग क्यों है। क्या गठबंधन की गाड़ी पंजाब के ट्रैक पर नहीं चढ़ पाएगी। तो फिलहाल तो ऐसा ही नजर आ रहा है, इंडिया गठबंधन की गाड़ी में पंजाब के दोनों इंजन अलग-अलग चलेंगे। वजह साफ है 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी तो वहीं 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित तौर पर आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी। पंजाब की दोनो पार्टियों को लोकल लीडरशिप भी साथ में चुनाव नहीं लड़ना चाहती क्योंकि आम आदमी पार्टी को लगता है कि जनता हमारे साथ है जबकि यही सपना पंजाब में कांग्रेस को भी आ रहा है जनता हमारे साथ है। पंजाब मे गठबंधन का ना होना निश्चित तौर पर नुकसानदाई रहने वाला हो सकता है क्योंकि बीजेपी ऐसे किसी भी मौके का हाथ से नहीं गवाना चाहेगी। वह जनता के बीच इसी मुद्दे को प्रमुखता देगी की दिल्ली , हरियाणा में भाई भाई, तो पंजाब में है गहरी खाई ।
गठबंधन को किसी भी विरोधाभासी बयान से बचना होगा
अगर गठबंधन को भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जीत हासिल करनी है तो गठबंधन के नेताओं को किसी भी प्रकार के विरोधाभासी बयान से बचना होगा । तभी जो उद्देश्य है उस उद्देश्य में वह सफल होने की राह पर चल पाएंगे । मतलब साफ है कि भारतीय जनता पार्टी हर ऐसे बयान को जनता के बीच लेकर जाएगी जो विरोधाभासी होगा । और ऐसे एक बार नहीं अनेकों बार गठबंधन के नेताओं के द्वारा बयान दिए जा चुके हैं जिसकी वजह से गठबंधन के ही नेताओं को बयान देने के बाद यह नहीं समझ आता कि आखिर अब करें तो क्या करें ।
अब यह तो लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा की जनता ने गठबंधन की गाड़ी में कितना पेट्रोल डाला है की गाड़ी कितनी दूरी तक सफर तय कर पाती है । या फिर जनता को वापस भारतीय जनता पार्टी की ही गाड़ी पसंद आती है । और वह उसी में ही बैठना पसंद करेगी ।
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