खरी खरी : हवा हवाई आंकडों के आसरे बनेगी भारत की इकोनॉमी 5 ट्रिलियन !
राजनीतिक पार्टियां चूल्हे में लकडिय़ों की माफिक सुलगाती है युवाओं को !
सत्ताधारी हो या विपक्ष कोई भी खुलकर यह नहीं बताता कि देश के भीतर खाली हाथ युवाओं की तादाद कितनी है। उसका नजारा तो राज्य दर राज्य में होने वाले प्रदर्शन से लगाया जा सकता है जब बेरोजगार युवाओं का हुजूम हिंसक प्रवृत्ति के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करने निकलता है और राजनैतिक दल भी अपने राजनीतिक नफा – नुकसान को देख कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए युवाओं को चूल्हे में लकडिय़ों की भांति इस्तेमाल करने से चूकते नहीं हैं। किसी भी सत्ताधारी को इससे कोई मतलब नहीं है कि देश का कोर सेक्टर किन परिस्थितियों में विकास दर के आसरे अंतिम सांस ले रहा है। किसी को फिक्र नहीं है कि देश के भीतर रोजगार क्यों गायब हो रहा है। कोई चिंता नहीं कर रहा है कि वो कौन सी पालिसी है जिसके चलते देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर खोखला और कंगाल होता चला जा रहा है। वो कौन सी परिस्थितियां है कि आज की तारीख में देश की किसी भी सत्ताधारी पार्टी में इतना साहस नहीं है कि वह चीनी सामानों के बहिष्कार करने की जनता से अपील कर सके। यहां तक कि स्वदेशी का राग अलापने वाले संगठन भी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दफन से हो गये हैं। अन्तरराष्ट्रीय तौर पर भी दुनिया के अलग – अलग देशों से भारत में माल तो आ ही रहा है। लोकल फार वोकल, मेक इन इंडिया जैसे राग पिछले 10 साल से अलापे जरूर जा रहे हैं लेकिन हकीकत यही है कि भारत में खुद का कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। एक भी ऐसा कुछ नहीं है जिससे खुद को स्वावलंबी कहा जा सके।
सरकार द्वारा भारत की कुलाचें मारती जीडीपी के जिन आंकडों को परोसा जाता है उनको हर क्षेत्र में नीचे जा रही विकास दर ही झूठा साबित कर रही है। सरकार के पास देश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कुल मजदूरों की संख्या के आधे से ज्यादा आंकड़े नहीं हैं। तो फिर सरकार द्वारा जो जीडीपी 6 फीसदी बताई जा रही है अगर असंगठित क्षेत्र के सकल मज़दूरों की संख्या शामिल कर दी जाय तो जीडीपी 3 फीसदी से भी नीचे आ जायेगी। संभवतः पहली बार बीजेपी ने बड़ी हिम्मत करके अपने एक प्रवक्ता टाइप नेता को अर्थव्यवस्था की स्थिति बताने भेजा मगर उस प्रवक्ता की बाॅडी लेंग्वेज और लडखडाती आवाज बता रही थी कि भारत की इकोनॉमी की स्थिति दयनीय है। उस प्रवक्ता ने देश को सिक्के का एक पहलू बताया और दूसरा पहलू छुपा लिया।
भारत सरकार ने चंद दिन पहले जो आंकड़े जारी किए वह बता रहे हैं कि औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन जो फरवरी 2024 में 5.6 फीसदी था वह फरवरी 2025 में घटकर 2.9 फीसदी रह गया है। माइनिंग क्षेत्र में भी 8.1 फीसदी से तकरीबन 7 फीसदी कम होकर 1.6 फीसदी हो गया है। बीजेपी के प्रवक्ता महाशय पावर सेक्टर का जिक्र करते हुए कह रहे थे कि बिजली की खपत बढ गई है मगर वे इस बढ़ती हुई खपत पर खुद ही सवालिया निशान भी लगा गये कि जनाब जब बिजली की खपत बढ़ गई है तो फिर बिजली का उत्पादन कम क्यों हो गया है। तो फिर दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में अन्धाधुन्ध बिजली कटौती क्यों हो रही है। इसका कारण है कि इलेक्ट्रिसिटी में भी पिछली फरवरी 24 की तुलना में लगभग 4 फीसदी की कमी आ गई है जो गत फरवरी में 7.6 फीसदी थी वह 3.6 फीसदी पर ठहर गई है। बैंकों से लोन लेकर घी पीने वाले गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले धन्नासेठों में से लगभग 58 फीसदी लोगों ने कर्जा चुकता नहीं किया है। भारतीय रिजर्व बैंक नोट छाप कर अभी तक बैंकों के खाते में लगभग 7 लाख करोड़ रूपये डाल चुकी है।
दुनिया भर के देशों के मुकाबले भारत के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की तादाद जनसंख्या के आधार पर 92 – 93 फीसदी के आसपास है। सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 2021 में मजदूरों की संख्या 43 करोड़ 99 लाख के करीब थी जो आज की स्थिति में वह बढकर 50 करोड़ के आसपास हो चुकी होगी। सरकार ने ई – श्रम के जरिए मजदूरों का पंजीकृत आंकड़ा एकत्रित करने का काम शुरू किया है। इसमें जो लोग काम करते हैं और जिनके जरिए काम होता है उन सभी को इसमें पंजीयन कराना होगा। ई श्रम में पंजीयन कराने वालों की संख्या तकरीबन 29 करोड़ 51 लाख है। बाकी बचे 20 – 30 लाख का कोई भी डेटा सरकार के पास नहीं है। ई श्रम में जिन मजदूरों का पंजीकरण किया गया है उसमें मनरेगा से जुड़े हुए मजदूर भी हैं। आज की तारीख में सरकार के मुताबिक मनरेगा के मजदूरों की संख्या 25 करोड़ 92 लाख के करीब है। इस पर भी सरकार बताती है कि मनरेगा के 25 करोड़ 92 लाख मजदूरों में से 14 करोड़ के करीब मजदूर अलग – अलग जगहों पर रोजगार कर रहे हैं। मतलब मनरेगा के एक्टिव मजदूरों की संख्या लगभग 11 करोड़ 66 लाख है। इसमें से सरकार ने 8 करोड़ 18 लाख मजदूरों को ही जाॅब कार्ड दिये हैं। इनमें से 1 साल के भीतर 5 दिन से 42 दिन का काम केवल 4 से 5 करोड़ मजदूरों के बीच ही रेंगता रहता है। यही है मनरेगा का कड़वा सच।
उत्तर प्रदेश सरकार के पास सिर्फ 8 करोड़ 34 लाख 95 हजार 132 मजदूरों का डेटा है जबकि कुल मजदूरों की संख्या 15.5 करोड़ के करीब होती है। इसमें वे मजदूर शामिल हैं जो प्रवासी मजदूर के तौर पर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए चले जाते हैं। बिहार में ये स्थिति तो और भी नाजुक है। बिहार में मजदूरों की तादाद तकरीबन 8 करोड़ है। लेकिन सरकार के पास 2 करोड़ 91 लाख 16 हजार 988 मजदूरों का ही डेटा है। पश्चिम बंगाल में मनरेगा काम नहीं करता क्योंकि यहां फंड ही नहीं दिया जाता है मगर यहां पर मनरेगा के तहत पंजीकृत मजदूरों की संख्या 18 लाख 46 हजार के आसपास है जिनके पास कोई काम नहीं है। 2024 में कुल मजदूरों की तादाद लगभग 50 करोड़ है और सरकार के पास पंजीकृत मजदूरों की संख्या 29 करोड़ 51 लाख 88 हजार 955 है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उडीसा इन 7 राज्यों के भीतर ही काम करने वाले मजदूरों की संख्या तकरीबन 39 करोड़ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 20 करोड़ मजदूरों का कोई धनीधोरी नहीं है, वो कहां है, कैसे जी रहे हैं। सरकार 5 किलो अनाज की खैरात देकर मस्ती में झूम रही है।
सवाल है कि एक ओर इंडस्ट्री, मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग, पावर जैसे हर सेक्टर को डूबता हुआ बताया जा रहा है और दूसरी ओर 50 फीसदी से ज्यादा मजदूरों की जानकारी दे पाने की स्थिति में सरकार नहीं है तो भारत के भीतर में प्रोडक्शन का क्या होगा ? क्या भारतवासी आने वाले दिनों में अमेरिकी माल पर निर्भर हो जायेंगे जैसे आज तक चीनी माल पर निर्भर हैं। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टेरिफ वार से तो जैसे लाटरी ही खुल गई है। चीन अपने माल को बड़ी तादाद में भारत के भीतर डंप कर रहा है। जो माल भारत में 100 – 125 रूपये में बनता है चीन उसी माल को 20 – 30 रूपये में दे रहा है। चीन की बड़ी – बड़ी कंपनियां भारत की बड़ी – बड़ी कंपनियों को 5 – 6 परसेंट डिस्काउंट में माल देने का आफर दे रही हैं खास तौर पर तीन टाप चीजें टेलीविजन, फ्रिज और स्मार्टफ़ोन।
देश के भीतर की इकोनॉमी का सच तो यही है कि म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले कम होते जा रहे हैं, डीमेट अकाउंट खुलना बंद सा हो गया है, आरबीआई नोट छाप – छाप कर बैंकों में पंप कर रहा है। पिछले बरस तक मजदूर मंडी से खाली हाथ लौटने वाले तकरीबन 45 फीसदी मजदूरों की संख्या आज की तारीख में लगभग 72 फीसदी हो चुकी है। ये हाल हैं उस मिडिल क्लास और लोवर मिडिल क्लास के जो सोचता था कि पैसा जमा कर लेंगे तो संकटकाल में काम आयेगा। पिछले साल की तुलना में इस साल शादी से जुड़े हुए सामानों में लगभग 22 फीसदी की बढोत्तरी हो गई है और बैंक के भीतर सावधि जमा यानी एफडी पर दिए जाने वाला ब्याज 7 – 7.5 फीसदी पार नहीं कर पाया है।
देश की चरमराती अर्थव्यवस्था से पैदा हो रहे संकट का जबाब दे पाने की स्थिति में जब कोई भी नहीं होगा (पक्ष-विपक्ष) तो देश के अलग – अलग राज्यों की सड़कों पर गुस्से का इज़हार तो होगा ही जैसे गत दिनों पश्चिम बंगाल में हुआ। कल को उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के गुस्से का इज़हार हो सकता है। तमाम आंकड़ों को सामने रख कर सरकार से जिन सवालों का जबाब मीडिया को पूछना चाहिए लेकिन मीडिया मालिक तो उन सवालों को दफन करके आक्रोश और सुलगती (जलती) हुई स्थिति को देखकर अपनी टीआरपी बढ़ाने में लगे हुए है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!