अब छाती पीटने से क्या फायदा , जब चुनाव गए हो हार !!!!!
48 घंटे बाद शीतकालीन सत्र मगर हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी की वजह से अब तक नहीं मिला विपक्ष का नेता
भाजपा नेताओं को चुटकी लेने का कांग्रेस खुद दे रही मौका
खबरी प्रशाद चंडीगढ़ रीतेश माहेश्वरी
एक मुहावरा है, “जब सांप चला गया , उसके बाद लाठी फटकारने का क्या फायदा।” यह मुहावरा पूरी तरह से इस समय हरियाणा कांग्रेस पर सटीक बैठता है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर की गुटबाजी ने उसे राजनीतिक संकट में डाल दिया है। चुनाव हारने के लगभग एक महीने बाद भी कांग्रेस अभी तक विपक्ष के नेता का नाम तय नहीं कर पाई है। चुनाव के दौरान पार्टी के नेता अलग-अलग मंचों पर नजर आए थे, लेकिन अब जब चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं और सत्ता भाजपा के पास है, तो कांग्रेस अपने अंदरूनी विवादों को सुलझाने में नाकाम है। पार्टी में हो रही गुटबाजी ने भाजपा नेताओं को चुटकी लेने का एक बार फिर मौका दे दिया है। तभी हरियाणा में कांग्रेस के लिए यह कहावत पूरी तरह से सटीक बैठ रही है – “जब सांप चला गया, तो लाठी फटकारने से क्या फायदा।”
13 नवंबर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में कांग्रेस ने अभी तक विपक्ष का नेता नहीं तय किया है। इस स्थिति से यह साफ होता है कि पार्टी का गुटबाजी का संकट इतना गंभीर है कि वह अपने भीतर का सबसे अहम निर्णय भी नहीं ले पा रही है। शनिवार को दिल्ली में हारने वाले नेताओं की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता चुनावी हार की वजह पर मंथन कर रहे थे। हालांकि, इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान ने साफ तौर पर कहा कि चर्चा सिर्फ और सिर्फ ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के मुद्दे पर होगी। इस बैठक में कांग्रेस के 14 नेता नही पहुंचे, जबकि आमंत्रण सभी हारे हुए 53 नेताओं को दिया गया था ।
कांग्रेस का यह गुटबाजी संकट अब इतना गहरा हो गया है कि हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले विपक्ष का नेता तय करना भी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है। अगर कांग्रेस ने जल्द ही विपक्ष के नेता का नाम घोषित नहीं किया, तो यह पहली बार होगा जब किसी विधानसभा के सत्र में विपक्ष का नेता नहीं होगा।
हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी की यह समस्या पिछले कई सालों से बनी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे बड़े नेता अलग-अलग गुटों का हिस्सा हैं, और चुनावी परिणामों में इस गुटबाजी का असर साफ देखा गया। यही कारण है कि कांग्रेस ने जिला स्तर तक संगठन को मजबूत नहीं किया और इसका खामियाजा उसे विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा।
भले ही कांग्रेस के पास राष्ट्रीय सेवक संघ (RSS) जैसे मजबूत संगठन का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस सेवा दल हो, लेकिन वह भी पिछले कुछ सालों में कमजोर पड़ा है। कांग्रेस के लिए अब वक्त आ गया है कि वह अपनी आंतरिक गुटबाजी पर काबू पाए और संगठन को मजबूत बनाए। पार्टी को अपनी अगली पीढ़ी तैयार करनी होगी, जो भविष्य में पार्टी की कमान संभाल सके। कांग्रेस हाई कमान को हरियाणा में जीत की राह सुनिश्चित करने के लिए कड़े फैसले लेने होंगे, ताकि पार्टी 2029 में एक मजबूत स्थिति में खड़ी हो सके । कड़े फैसले लेने के बाद हो सकता है कुछ बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ भी दे पर पार्टी को यह रिस्क तो लेना ही पड़ेगा ।
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