उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
आज कल ख्वाब बड़े अच्छे आने लगे हैं
ख्वाब भाजपा के नीतीश कुमार के, ख्वाब चंद्रबाबू नायडू के, ख्वाब चिराग पासवान, योगी आदित्यनाथ, शिवराज चौहान, नितिन गडकरी, इंडिया गठबंधन और ख्वाब भारतवर्ष के 140 करोड़ लोगों के
वर्ष 2024 में हुए 18वीं लोकसभा चुनाव बड़े ही रोमांचक और बहुत कुछ सीखने-सिखाने और कई स्थितियों को साफ करने वाले हैं । एक सबक जो भारत के हर एक नेता हर मतदाता से जुड़ा है। जहां मतदाता ने भी एक बार फिर मुद्दों पर मतदान करने और धर्म और नफ़रत की राजनीति को नकारने का सबक पाया और सिखाया है, वहीं देश के स्टार नेताओं ने भी बहुत कुछ पाया और खोया है।
देखने में स्वाद सा आ रहा है
विभिन्न राजनीतिक दलों ने इससे पहले भी कई तरह के चुनाव में कई तरह के अनुभव पाए हैं । लेकिन इस बार यह अनुभव बड़ी से बड़ी पार्टी और छोटे से छोटे दल हर किसी के लिए नया और अलग है। इसी बीच कई सियासी चर्चा भी प्रचंड गर्मी की तरह है देश का पारा चढ़ाए हुए है। पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में जादुई आंकड़ा पाने वाली भारतीय जनता पार्टी इस बार मेजोरिटी न पाने का कड़वा स्वाद चख रही है। नरेंद्र मोदी वो शख्सियत हैं जिन्होंने गठबंधन में हमेशा औपचारिकता के तौर पर धर्म निभाया है लेकिन बड़े-बड़े फैसले डंके की चोट पर लिए हैं।फिर चाहे वह गुजरात में मुख्यमंत्री का अनुभव हो या फिर चाहे प्रधानमंत्री के तौर पर पिछले 10 साल का जो कार्यकाल रहा, वहां गठबंधन में किसी भी तरह का दबाव न झेलने का सुख प्राप्ति रही। लेकिन एक नई पीड़ा इस बार नरेंद्र मोदी को सहनी पड़ रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अभी भी उम्मीद का दमन छोड़ती नजर नहीं आ रही। इंडिया टीम प्रधानमंत्री पद से लेकर सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय और पदों को थाल में सजाकर इंतजार कर रही है, वहीं एनडीए ग्रुप में सहयोगी पार्टियां अब अपनी शर्तों पर सहयोग देगी। वह बात अलग है कि उनकी शर्तों को किस हद तक स्वीकारा जाएगा।चाहे जेडीयू हो, टीडीपी हो या फिर लोजपा हो या एकनाथ शिंदे कि शिवसेना हो।
सवाल यह भी है कि नरेंद्र मोदी हैट्रिक लगाने के लिए क्या अब नई तरह की राजनीति कर पाएंगे क्या ??? चंद्रबाबू नायडू की बात करें तो उनके व्यवहार को तो सभी जानते हैं कि वह समय आने पर वसूली करना अच्छे से जानते हैं। केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पद से लेकर मंत्रालय हो विशेष पैकेज की डिमांड तक रखने में गुरेज नहीं करेंगे जो कि उनकी विशेषता है। वहीं कुछ महत्वाकांक्षाएं महत्वपूर्ण पदों और मंत्रालय को लेकर और बार-बार विभिन्न प्लेटफार्म पर बिहार को विशेष दर्जा दिलवाने के दावे को पूरा करवाने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार की भी है। ऐसे में यह भी याद रखना जरूरी है कि जब नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन का हिस्सा थे तब प्रधानमंत्री पद के लिए एक अच्छा ऑप्शन रहे। और आज भी ये अवसर इंडिया टीम थाली में सजा कर देने को तैयार नजर आता है। बिहार से निकली और दिल्ली तक पहुंची राजनीति में एक बड़ा संयोग भी देखने को मिल सकता है। लोकसभा चुनाव में 100% परिणाम देने वाली चिराग पासवान की पार्टी पांच सांसदों के साथ बेशक अपने आप को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री पद की मांग और कैबिनेट में एक पद मांगे जाने की चर्चाएं हैं। देखना यह होगा कि क्या नीतीश कुमार यह गवारा कर सकेंगे ? इतना ही नहीं इंडिया गठबंधन से जुड़े सहयोगी दलों के सोशल मीडिया पर एक्टिव नेता और प्रवक्ता बार-बार रेड फ्लैग के तौर पर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को दिखाना चाह रहे हैं कि अगर वह एनडीए के साथ गए तो उनके दलों का वजूद मिट सकता है।
यहां तक की उन्हें बार-बार पुराने ज़ख्म याद दिलाने का प्रयास चल रहा है। इस उम्मीद में की इन जख्मों को कुरेदने से ये छटपटाएं, इन दोनों नेताओं के पुराने बयानों और भाजपा के साथ पुराने कटु अनुभवों को लगातार वायरल किया जा रहा है। ताकि वो दोनों इंडिया टीम की तरफ अपना रुख करें।
चुनौतियां भाजपा के लिए भी अब कम नहीं
भाजपा के लिए यह चुनौती भी है कि अगर टीडीपी, जेडीयू, लोजपा और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की शर्तों, पदों, राज्य कोविशेष दर्जा, विशेष पैकेज, स्पीकर पद, महत्वपूर्ण मंत्रालय या प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के पदों पर दूसरे चेहरों की मांगों को कैसे डील करेंगे??
केंद्र में इतने सारे महत्वपूर्ण पदों को अगर इन्हीं में बांट दिया तो उनकी खुद को पार्टी के सांसदों को कैसे एडजस्ट करेंगे, वैसे भी मंडी से नवनिर्वाचित सांसद कंगना रनौत का तो सपना ही है नरेंद्र मोदी से “बेस्ट सांसद” का अवार्ड पाने का ।
- क्या नरेंद्र मोदी इस नई तरह की, नई तरह की राजनीति और दबाव को झेलने के लिए तैयार है??
- क्या नरेंद्र मोदी ही एनडीए गठबंधन की तरफ से नए प्रधानमंत्री के तौर पर चुने जाएंगे???
- प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरों को बदलने की चर्चा/अफवाह है
मध्य प्रदेश में 100% रिजल्ट देने वाले और 8 लाख से ज्यादा मार्जिन से जीतने वाले शिवराज चौहान, आरएसएस और भाजपा सहित एनडीए गुट के कई नेताओं के पसंदीदा चेहरे नितिन गडकरी और राजनाथ जैसे नाम भी चर्चा/अफवाहों के बाजार में हैं।
क्या भाजपा उत्तर प्रदेश में करारी हार के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी सबक सिखाना चाहती है??*
भाजपा की अपनी कई लड़ाइयां अभी बाकी हैं….
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा द्वारा संघ को दरकिनार करना कितना महंगा पड़ सकता है??
जे पी नड्डा के कार्यकाल के एक्सटेंशन पीरियड के खत्म होने को है, नए चेहरे को लेकर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और करनाल से सांसद मनोहर लाल का नाम भी चर्चाओं में है । भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली मुख्यालय में कल यानी 4 जून की शाम 8 बजे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन होना था उसमें कई अलग संकेत दिखे। जय जगन्नाथ की जयकारे, नरेंद्र मोदी का हताश और जबरदस्ती मुस्कुराने वाला चेहरा, देरी से पहुंचना जैसे उन्हें मन कर लाया गया हो बहुत कुछ कह गया। अमेठी हो या काशी हो अहंकार की राजनीति के खिलाफ लोगों का फैसला आया है, भाजपा के लिए यह आत्ममंथन का विषय है। भाजपा की अहंकार और सहयोगी दलों की अनसुनी करने की फितरत से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू अनभिज्ञ नहीं हैं, जानते तो वो भी सब कुछ हैं। देश की सुरक्षा एजेंसियों और राष्ट्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर लगातार भाजपा सरकार, नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर अलग-अलग समय पर सवाल उठाने वाले चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार जिन भी कारणों के चलते एनडीए में शामिल हुए थे क्या अब भी उन कारणों और उनके परिणामों को जानकर इस नाव में सवार रहेंगे?
खड़गे द्वारा संविधान बचाने के लिए और संविधान का साथ देने के लिए जिस तरह से अन्य दलों को आमंत्रित किया जा रहा है क्या उस संविधान के खतरे को लेकर ये नेता अनभिज्ञ हैं?
फिलहाल अब जो सूरत बनी हुई है
अगर आज की तारीख में एनडीए सरकार अगर बन जाती है तो क्या 5 साल तक ये सरकार टिक पाएगी और नरेंद्र मोदी क्या इस दबाव को झेल पाएंगे? या फिर देश फिर एक बार चुनाव झेलेगा, यही बात इंडिया टीम पर भी लागू होती है। हालांकि इंडिया गुट अब सहने के मामले में पारंगत हासिल कर चुका है। इंडिया गठबंधन अस्तित्व में आने से लेकर अब तक बड़ी मजबूती के साथ सभी दल खड़े नजर आए। फिर चाहे वह टिकट वितरण हो, चुनाव प्रचार हो, एक दूसरे के दल के नेता के साथ सत्ता पक्ष द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर मुखर होना हो, डराने धमकाने की राजनीति को नकारना हो या सही मुद्दों को लेकर लोगों के बीच 1 सुर में जाना हो यह बड़ी उपलब्धि उनके खाते में है।
तुम थोड़ा नज़र अंदाज तो करके देखो….
हम तुम्हें पहचानने से ही इनकार कर देंगे…..
उमंग विजय श्योराण
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