पहली बार ED की कार पहुंची अंबानी के द्वार : चाय पीने नहीं घोटाले के मामले को लेकर !
यस बैंक लोन घोटाले में दिल्ली-मुंबई सहित 35 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी
संसद में सरकार 10 साल में 12 लाख करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में
नई दिल्ली/मुंबई केशव भुराड़िया
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार सुबह उद्योगपति अनिल अंबानी और उनके रिलायंस ग्रुप से जुड़ी कंपनियों के ठिकानों पर एक बड़े सर्च ऑपरेशन की शुरुआत की। यह कार्रवाई यस बैंक द्वारा दिए गए ₹3000 करोड़ के संदिग्ध लोन और मनी लॉन्ड्रिंग मामले से जुड़ी है। ED की टीमों ने दिल्ली और मुंबई में 35 से अधिक ठिकानों और करीब 50 कंपनियों पर छापेमारी की।
Ed सूत्रों के अनुसार यह कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत की जा रही है, जिसमें अनिल अंबानी की RAAGA कंपनियों और रिलायंस समूह की अन्य इकाइयों के खिलाफ गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की जांच की जा रही है। इस ऑपरेशन में CBI, SEBI, नेशनल हाउसिंग बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और NFRA जैसी केंद्रीय एजेंसियों की मदद ली गई है।
क्या है पूरा मामला?
जांच एजेंसियों के अनुसार, 2017 से 2019 के बीच यस बैंक ने रिलायंस ग्रुप की RAAGA कंपनियों को ₹3000 करोड़ का लोन जारी किया था। ED की शुरुआती जांच में सामने आया है कि ये लोन फर्जी कंपनियों और ग्रुप की अन्य इकाइयों में अवैध रूप से ट्रांसफर किए गए। कई मामलों में दस्तावेजों में हेरफेर, बैकडेट पर लोन अप्रूवल और बिना उचित जांच के ऋण वितरण जैसे गंभीर वित्तीय अनियमितताएं उजागर हुई हैं।
CBI की FIR बनी आधार
ED की कार्रवाई का आधार बनीं हैं CBI की दो FIR (RC2242022A0002 और RC2242022A0003), जिनमें रिलायंस अनिल अंबानी ग्रुप से जुड़ी RAAGA कंपनियों पर धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज और बैंकों से ऋण हड़पने के आरोप दर्ज हैं। इन शिकायतों के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का पूरा नेटवर्क उजागर हुआ, जिसमें प्रमोटरों द्वारा लोन की रकम शेल कंपनियों में ट्रांसफर करने के सबूत भी मिले।
RHFL और SEBI की भूमिका
सेबी की जांच में भी रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) पर गंभीर सवाल उठे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, RHFL ने 2017-18 में ₹3,742 करोड़ और 2018-19 में ₹8,670 करोड़ के कॉरपोरेट लोन ऐसे संस्थानों को दिए, जिनका वित्तीय रिकॉर्ड बेहद कमजोर था। इन लोन का बड़ा हिस्सा ग्रुप की अन्य कंपनियों में डायवर्ट कर दिया गया।
SBI ने FRAUD घोषित किया था
कुछ दिन पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस को आधिकारिक रूप से ‘फ्रॉड’ घोषित किया था। बैंक का आरोप है कि ₹31,580 करोड़ के लोन में से ₹13,667 करोड़ अन्य कंपनियों के कर्ज चुकाने में और ₹12,692 करोड़ ग्रुप की दूसरी कंपनियों को ट्रांसफर किए गए। SBI ने CBI को शिकायत दर्ज कराने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
बाजार पर असर
छापेमारी की खबर सामने आने के बाद रिलायंस ग्रुप की दो प्रमुख कंपनियों – रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर – के शेयरों में 5% तक की गिरावट दर्ज की गई।
क्या आगे बढ़ेगी कार्रवाई?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ED को मनी लॉन्ड्रिंग के और ठोस प्रमाण मिलते हैं तो अनिल अंबानी और उनके ग्रुप के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी की कार्रवाई भी संभव है। फिलहाल एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, फाइनेंशियल स्टेटमेंट और इंटर-कंपनी ट्रांजैक्शन की गहन जांच में जुटी हैं।
अनिल अंबानी पर एक बार फिर बड़े स्तर की वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगा है। ED की इस कार्रवाई ने भारतीय कॉर्पोरेट जगत में हलचल मचा दी है और अब सभी की निगाहें इस मामले में आने वाले कानूनी कदमों पर टिकी हैं।
सिर्फ़ 10 साल में 12 लाख करोड़ का कर्ज़ बट्टे खाते में: संसद में खुलासा, बैंकिंग व्यवस्था पर उठे सवाल
नई दिल्ली केशव भुराड़िया
देश की बैंकिंग व्यवस्था को लेकर एक बार फिर चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है। केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि पिछले 10 वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल ₹12.09 लाख करोड़ के कर्ज़ को “बट्टे खाते” में डाल दिया है — यानी इस राशि को अब वसूल होना लगभग असंभव माना जा रहा है और बैंक इसे अपनी बैलेंस शीट से हटा चुके हैं।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने यह जानकारी एक सवाल के लिखित जवाब में दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि बट्टे खाते में डालने का मतलब यह नहीं कि उधारकर्ता का ऋण पूरी तरह माफ हो गया है। बैंक अब भी कानूनी प्रक्रियाओं जैसे दीवानी मुकदमे, ऋण वसूली ट्राइब्यूनल (DRT) और इन्सॉल्वेंसी कार्यवाहियों के ज़रिए वसूली की कोशिशें करते हैं।
पिछले 5 वर्षों में 5.82 लाख करोड़ का कर्ज़ राइट ऑफ
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते पांच वर्षों में ही ₹5.82 लाख करोड़ की राशि को राइट ऑफ किया गया है।
इनमें सबसे आगे है:
भारतीय स्टेट बैंक (SBI): ₹1.14 लाख करोड़
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया: ₹85,540 करोड़
पंजाब नेशनल बैंक (PNB): ₹81,243 करोड़
ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि सरकारी बैंक कर्ज़ वसूली में किस हद तक पिछड़ते रहे हैं, खासकर बड़े ऋणों के मामले में।
जानबूझकर ऋण न लौटाने वाले 1,629 उधारकर्ता चिन्हित
एक और गंभीर चिंता का विषय यह रहा कि 1,629 उधारकर्ताओं को “जानबूझकर ऋण न लौटाने वाला” (wilful defaulter) घोषित किया गया है। इन पर ₹1.63 लाख करोड़ की देनदारी अब भी बकाया है।
सरकार ने कहा कि ऐसे उधारकर्ताओं और उनसे जुड़ी कंपनियों को आगे किसी भी प्रकार का बैंक लोन, पूंजी बाज़ार से फंडिंग या अन्य वित्तीय सुविधा देने पर रोक लगा दी गई है।
विपक्ष और विशेषज्ञों की कड़ी प्रतिक्रिया
इस खुलासे के बाद विपक्षी दलों ने सरकार और बैंकिंग सेक्टर पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि यह साबित करता है कि बड़े कॉरपोरेट समूहों को कर्ज़ लेकर उसे न चुकाने की खुली छूट मिलती रही, जबकि एक आम व्यक्ति यदि छोटा कर्ज़ नहीं चुका पाए तो उसे कानूनी कार्रवाई और संपत्ति जब्ती जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बढ़ता बट्टा खाता कर्ज़ (write-off) हमारी वित्तीय प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर करता है। यह एक संकेत है कि कर्ज़ वितरण और निगरानी प्रणाली में सुधार की बेहद ज़रूरत है।
क्या है बट्टे खाते में डालना?
बट्टे खाते में डालना यानी किसी कर्ज़ को बैंक की बैलेंस शीट से हटा देना। यह तब किया जाता है जब उस कर्ज़ की वसूली असंभव या बेहद मुश्किल मानी जाती है। हालांकि कानूनी स्तर पर वसूली की प्रक्रिया चलती रहती है, लेकिन बैंकों को इस पर ज्यादा भरोसा नहीं होता।
बैंकिंग पारदर्शिता पर फिर बहस
इस खुलासे ने देश में बैंकिंग पारदर्शिता, ऋण वितरण की नैतिकता, और आम बनाम खास के लिए लागू अलग-अलग मानकों पर नई बहस को जन्म दे दिया है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार और बैंक इस स्थिति से सबक लेकर, भविष्य के लिए कोई ठोस नीति परिवर्तन करते हैं या यह आंकड़े भी कागज़ों तक ही सीमित रह जाएंगे।
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